राष्ट्रीय

क्या कृषि प्रधान देश में किसानों को न्याय मिलेगा?किसानों का हक़ उन्हें मिलेगा?

भारत संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है, और सभी ग्रामीण समुदायों में अधिक मात्रा में कृषि कार्य किया जाता है इसीलिए भारत को भारत कृषि प्रधान देश की संज्ञा भी मिली हुई है। आज समस्त भारत के किसान सरकार के बनाए तीनों कानूनों के विरुद्ध एक जुट होकर इसका विरोध कर रहे हैं।क्योंकि यह नये तीन क़ानून धीरे धीरे किसानों की ज़मीन हड़प कर लेंगे।किसानों को जो आज उस ज़मीन के मालिक हैं, उसी ज़मीन का इनको ग़ुलाम बना दिया जाएगा।कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत इनको वही फ़सल उगानी पड़ेगी जो कंपनियां कहेंगी।
शुरुआत के चार पाँच साल तक तो कंपनियां मुनाफ़ा देंगे परंतु जब धीरे धीरे सारी मंडिया बंद हो जाएंगी तब असली रूप निकलके आएगा कंपनियों का फिर कंपनियां अपनी मनमानी शुरू करेंगी।जब यह तीनों क़ानून विदेशों में नहीं चल पाए, विदेशों में इन कानूनों के कारण डेयरी फ़ार्म्स बंद हो गए हैं ।जबकि वहाँ पर किसानों को सब्सिडी सरकार द्वारा दी जाती है ,जबकि भारत में तो अब तक MSP तक निर्धारित नहीं की गई है।भारत जैसे देश में यह क़ानून नहीं टिक सकते क्योंकि इन कानूनों का मक़सद किसानों का खून चूस न है न कि उनके हक़ उनके भविष्य के प्रति सोचना।पूंजीपतियों को ख़ुश करने के लिए किसानों का दमन किया जा रहा है।
लगभग 70% भारतीय लोग किसान हैं। वे भारत देश के रीढ़ की हड्डी के समान है।
खाद्य फसलों और तिलहन का उत्पादन करते हैं। वे वाणिज्यिक फसलों के उत्पादक है। वे हमारे उद्योगों के लिए कुछ कच्चे माल का उत्पादन करते इसलिए वे हमारे राष्ट्र के जीवन रक्त है। भारत अपने लोगों की लगभग 60 % कृषि पर प्रत्यक्ष या पपरोक्ष रूप से निर्भर भारतीय किसान पूरे दिन और रात काम करते है।
पूरे देश का पेट भरने वाला किसान आज क्यों मजबूर हुआ सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए?सड़कों पर विरोध करने के लिए? क्यों सरकार आँख बंद कर के बैठी है? क्यों किसानों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है? क्यों सरकार सिर्फ़ और सिर्फ़ पूंजीपतियों तक सीमित रह गई है? क्यों किसानों के ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे दिए जा रहे हैं?
आख़िर क्यों मौलिक अधिकारों की अवहेलना की जा रही है?जब संविधान ने हर एक भारतीय नागरिक को हक़ दिया है कि भारतीय नागरिक को बोलने की स्वतंत्रता है 19 (a) अनुच्छेद और शांतिपूर्वक एकत्रित होने की स्वतंत्रता है 19(b)अनुच्छेद के तहत फिर क्यूँ प्रजातंत्र का गला घोटा जा रहा है? सरकार नागरिकों के लिए होती है।नागरिकों का दमन करने के लिए नहीं।
करोना काल में जब भारत में ही नहीं अपितु सभी देशों में अर्थव्यवस्था डगमगा गई थी,उस समय सिर्फ़ और सिर्फ़ किसानों की वजह से ही देश सँभल पाया था।किसानों की मेहनत के कारण ही इस क्षेत्र में लाभ हुआ था।
सरकार बार बार कोशिश कर रही है,पंजाब पर आरोप लगा रही है पर यह सरकार कैसे भूल गई? कि इसी पंजाब के वीर जवानों ने अपने पूरे के पूरे परिवार की आहुतियां दी थी,तब जाके देश आज़ाद हुआ था।बार बार इन के दिलों को आहत किया जा रहा है।कभी किसी संख्या से पुकारा जा रहा है तो कभी किसी नाम से पुकारा जा रहा है जो सरेआम ग़लत हैं ।
किसान आंदोलन सर्वोयापी आंदोलन बन चुका है। हर एक राज्य हैं हर एक देश किसानों के लिए एक जुट होकर एक आवाज़ बन गया है।क्या सरकार अब भी गूंगी ,बहरी और अंधी बनी रहेगी?
यदि सरकार और राजनेताओं की मंशा अच्छी होगी और सच्ची होगी तो मैं उम्मीद करता हूँ किसानों का हक़ उन्हें दे दिया जाए उनकी माँगें स्वीकार की जाए।कितने महीनों से किसान अपने परिवारों से दूर होकर रोड पर पड़े हैं।संघर्ष कर रहे हैं ,इन को नज़रअंदाज़ करना सरेआम ग़लत है।
एक समय था कि हमारे देश का नारा हुआ करता था, “जय जवान जय किसान”परंतु आज के समय में ना किसान की सुनी जा रही ना सरहद पर खड़े जवान की सुनी जा रही।दोनों ही दुविधा में हैं दोनों ही दुखी है परन्तु फिर भी सरकार दोनों की अवहेलना करती आ रही है।दोनों के हकों को नहीं सुना जा रहा ना उनका हक़ दिया जा रहा हैं।भारत देश इस को क़तई बर्दाश्त नहीं करेगा।
इस समस्या का जल्द ही समाधान हो ताकि न्याय को स्थापित किया जा सके।
जय हिन्द जय भारत
जय जवान जय किसान
Advocate Monty Deswal (Himanshu Deswal)

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