हिमाचल प्रदेश

मुझे न पढ़ाओ,मेरा काम ही पढ़ना-लिखना है:अनुराग ठाकुर

अनुराग का ऐलान : मुझे न पढ़ाओ,मेरा काम ही पढ़ना-लिखना है

● दिशा की बैठक में अनुराग ने “बिठा-बिठा” कर समझाए अफसर

हिमाचल की अफसरशाही को अनुराग लाइन ऑफ एक्शन बता ही रहें हैं,साथ रोड मैप भी बनाकर दें रहे हैं। साथ ही मोदी की छवि को कायम रखने के लिए उस विटामिन एम (मोदी) की डोज़ भी दे रहे हैं जिसकी पॉलिटिकल सप्लाई हिमाचल सरकार के खाते से प्रॉपर नहीं हो पा रही है। जनता से जुड़े हर मुद्दे पर अनुराग इस तरह की तैयारी के साथ बैठकों को अंजाम दे रहे हैं कि अफसरों के दिए “ज्ञान” को जितने ध्यान से सुनते हैं,उससे कहीं ज्यादा शिद्दत से “प्रशाद” भी बांट देते हैं। हिमाचल के एक लोकगीत खिन्नु बड़ा उस्ताद की तर्ज पर यह छोकरु सियासत में अपनी उस्तादी से बड़े-बड़ों की छाती पर मूंग भी दल रहा है।।

 

यह कैसे हो रहा,किस तरह हो रहा है,यह जानने के लिए आपको मंगलवार को हुई उस बैठक का माहौल जानना होगा,जिसमें अनुराग ने ऑफिसर क्लास को सियासत के ग्लास में उतार कर हर उस पैमाने से वाकिफ़ करवाया जो मोदी ने तय किया है। ठाकुर ने सियासी तौर पर अपनी एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्स से अफसरों को इस तरह से हैंडल किया कि अफसर मोटिवेट भी हों और काम भी करें। मंगलवार को धर्मशाला में डिस्ट्रिक्ट डिवेलपमेंट कोऑर्डिनेशन एंड मॉनिटरिंग कमेटी यानि दिशा की बैठक थी। अफसरों के हाथ-पांव फूले हुए थे।दरअसल, इससे पहले की वर्चुअल बैठक के दौरान अफसरों के एक्चुअल में ही पसीने छुड़वा दिए थे। इस बार सब एक्चुअल में आमने-सामने होना था तो सबकी सांसे उखड़ी हुईं थीं कि पता नहीं क्या-क्या हो जाएगा? अफसर पूरी तैयारी के साथ आए हुए थे। बावजूद इसके फिर भी कई बार माहौल ऐसा बना,जिससे यह साबित हो गया कि “दिशा” तो अपनी जगह सही है पर जमीन पर हिमाचल सरकार के सिस्टम की “दशा” सही नहीं है।

हिमाचल की अफसरशाही में एक कॉमन बीमारी है कि यह लोग वही नेताओं को बताते हैं जो इनको सूट करता है। इसी वजह से वो मामले डिसकस नहीं होते जो जनता के लिए सूट होते हैं। इस बैठक में भी यही होने शुरू हुआ। आंकड़ों का खेल होते देख ठाकुर भांप गए कि अफसरों की तैयारी फैक्ट एंड फिगर बेस्ड तो है,पर पब्लिक इशू बेस्ड नहीं है। अफसर अधिकांश मसलों की आड़ में उन मसलों को भी मसलने के मूड में थे कि साहब को सब हरा-हरा ही दिखाया जाए। पर अनुराग पहले ही कदम पर यह कह कर एडमिनिस्ट्रेटिव ठुकाई कर दी कि,” मुझे न पढ़ाओ, मेरा काम ही पढ़ना-लिखना है।”

 

कृषि विभाग के अफसर जब ठाकुर की कसौटी पर कसे तो खोट भी दिखने शुरू हो गया। ठाकुर ने सिंपल सा सवाल दागा कि मुझे यह बताओ कि किसान कितनी कमाई सालाना और फसल चक्र के हिसाब से कमाता है ? जवाब आया प्रति हैक्टर में । बस यहीं अनुराग ने रग दबा दी। फिर सवाल दागा कि यह बताओ कि ऐसे कितने किसान हैं जिनकी जमीन एकड़ों में है ? मुझे प्रति कनाल,प्रति बीघा बताओ। कम जमीन वाले छोटे किसान की आय का आंकड़ा दो ? खैर,फिर जवाब आया कि जनाब औसतन 4 हजार रुपए प्रति कनाल । अब अनुराग ने अगला सवाल दाग दिया । पूछा कि अगर पारम्परिक खेती की जगह अलग-अलग टाइप की फसलों को कांगड़ा में बढ़ावा दिया जाए तो प्रति कनाल कितनी इनकम होगी ? जवाब आया कि सर,50 हजार प्रति कनाल होगी। अब यही एक बार फिर से एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्स से अफसरों को मेंटली स्लिप कर दिया। पूछा कि जब इतना फर्क पड़ता है तो काम क्यों नहीं करते ?

 

दरअसल, अनुराग ने हर मसले पर अफसरों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि केन्द्र की करोड़ों-अरबों की योजनाएं उनकी कार्यशैली की वजह से आम आदमी के लिए धेले की भी नहीं रहती हैं। दरअसल,अनुराग ने इस तरह से अफसर लॉबी को हैंडल किया जिससे अफसर लॉबी ने खुद असहज भी महसूस नहीं किया और भविष्य में सरकार के करीब होने के संकेत भी दिए।

आउट ऑफ द बॉक्स आइडियाज़..

 

ठाकुर ने अफसरों को टेक्निकली,पर्सनली इम्पॉर्टेंस देने में भी कोई कमी नहीं रखी। एक ऐसी चेन नेताशाही और अफसरशाही में बनाई जिसकी कमी हिमाचल में दिखती है। एक विधायक महोदय पारम्परिक राजनीति की राह पर चलते हुए यह साबित करने पर उतारू थे कि अफसर काम नही करते,रिपोर्ट नहीं करते। ठाकुर की जगह कोई और बड़ा नेता होता तो वह क्लास लगा देता अफसरों की। पर ठाकुर ने अफसर लॉबी के सम्मान को धक्का भी नहीं लगने दिया। कहा कि भैया अफसर फील्ड में हर वक़्त नहीं रह सकता। उसको एडमिनिस्ट्रेटिव काम भी करना होता है। साथ ही नेता के अहम के वहम को भी यह कह शांत कर दिया कि जूनियर अफसर फील्ड देखेंगे फिर टारगेट हिट होंगे।

यह भी सलाह दी कि जमीन पर अफसर काम को अंजाम देंगे। थोड़ा प्यार से बात कीजिए।

भविष्य की योजनाएं नहीं आज की जमीन दिखाओ…

कुछ अफसर ऐसे भी थे जो बारम्बार टोकने पर भी आंकड़ों के मायाजाल में यह साबित करने पर उतारू थे कि जनाब सब सही जा रहा है। भविष्य में यह होगा,वो होगा। लगाम कसते हुए ठाकुर ने यह कह कर उनकी भविष्यवाणियों को ठंडा कर दिया कि भाई,मुझे आज की जमीनी हकीकत बताओ,भविष्य की योजनाएं नहीं

एक महीने  में  एटीआर चाहिए

 

ठाकुर ने अफसरों को टाइम बॉण्ड टारगेट देने की शुरुआत भी कर दी। हर तीन महीने में एक बार होने वाली दिशा की बैठक में इस बार ही लक्ष्य निर्धारित कर दिए। इस बार की बैठक में उन्होंने ने सिस्टम को टाइट करते हुए अफसरों को 28 दिन का वक़्त दिया और यह कहा कि किस-किस मामले में क्या-क्या किया इसमें एक्शन टेकन रिपोर्ट आप लोग ई-मेल पर भेजेंगे।

7 पैसे के मैसेज से संवाद करो

टीबी,कुष्ठरोग,कुपोषण जैसे मसलों पर अनुराग ने यह सलाह दी कि दवाई के कोर्स को लेकर मरीजों के साथ सम्पर्क में रहना होगा। बल्क मैसेज के पैक को आप अपने प्रोजेक्ट में शामिल करें और मरीज के ट्रीटमेंट और डाइटचार्ट के बाबत वक़्त-वक़्त पर जानकारी दें। जरूरी नहीं है कि हर काम मे मैन पॉवर ही यूज़ की जाए।

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