अकाली भाजपा सरकार के समय जारी पत्र पर एस सी कमीशन ने 7 साल बाद रोस्टर नुक्तों सम्बन्धी जारी पत्र पर लगाई रोक, उस समय विधान सभा ने लिया था नोटिस , फिर भी सरकार ने नहीं लगाई थी रोक
पंजाब राज अनुसूचित जाति आयोग की तरफ से रोस्टर नुक्तों सम्बन्धी 10-10-2014 को जारी विवादित पत्र के अमल पर तुरंत रोक लगाने के आदेश
चंडीगढ़, 27 जनवरीः
पंजाब राज अनुसूचित जाति आयोग की तरफ से आज एक आदेश जारी करके रोस्टर नुक्तों सम्बन्धी 10-10-2014 को जारी एक विवादित पत्र के अमल पर तुरंत रोक लगाने के आदेश दिए हैं।
2014 में जिस समय यह पत्र जारी हुआ था उस समय भी इस का काफी विरोध हुआ था लेकिन सरकार अपने फैसले पर अडिंग रही थी कि सरकार ने नियमो के तहत सही पत्र जारी किया है । उस समय एस सी विधायकों ने भी यह मामला उठाया था और उस समय विधान सभा के स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल थे । उन्हों ने भी इस मामले में नोटिस लिया था और परोसनल विभाग के अधिकारियो को तलब किया था । लेकिन इस के बावजूद विभाग ने अधिकारियो ने यह पत्र वापस नहीं लिया था और कहा था कि पत्र ठीक जारी हुआ है लेकिन अब एस सी कमीशन ने इस पत्र पर रोक लगाने के आदेश जारी दिए है ।
इस सम्बन्धी जानकारी देते हुये पंजाब राज अनुसूचित जाति आयोग की चेयरपर्सन तेजिन्दर कौर ने बताया कि पंजाब विधान सभा की अनुसूचित कबीलों और पिछड़ी श्रेणियों की कल्याण कमेटी की 45वीं रिपोर्ट (2019-2020) के द्वारा यह मामला आयोग के ध्यान में आया था।
उन्होंने बताया कि इस पर आयोग की तरफ से पंजाब सरकार के परसोनल विभाग और सामाजिक न्याय, अधिकारिता और अल्पसंख्यक विभाग के साथ कई मीटिंगें की गई और इस पत्र को जारी करने सम्बन्धी दस्तावेजों को जाँचा गया, जिससे यह सामने आया कि परसोनल विभाग की तरफ से पंजाब सरकार के एलोकेशन ऑफ बिजनस रूल्ज 2007 के द्वारा तय किये गए अलग-अलग विभागों के अधिकार क्षेत्रीय का उल्लंघन करते अपने स्तर पर ही यह पत्र जारी किया गया था।
तेजिन्दर कौर ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एम. नागराज बनाम भारत सरकार फैसले की कम्पैलिंग रीजनज की शर्तों पर आधारित और साल 2018 में मंत्री परिषद और विधान सभा की मंजूरी से कम्पैलिंग रीजनज की शर्तों की पूर्ति हो जाने के उपरांत 85वें संशोधन सम्बन्धी तारीख 15-12-2005 ( जो सरकार की तरफ से कभी भी वापिस नहीं ली गई) कानूनी तौर पर पूरी तरह वैलिड हो चुकी हैं और समूह विभागों में इन हिदायतों की पालना करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विवादित पत्र के कारण कई विभागों में अनुसूचित जाति वर्ग के कर्मचारियों के कानूनी हकों का नुकसान हुआ है।