पंजाब

मुख्यमंत्री ने उत्तरी ज़ोनल कौंसिल की बैठक में अमित शाह के आगे ज़ोरदार ढंग से उठाए पंजाब के मसले  

पंजाब के हितों की रक्षा के लिए राज्य सरकार की वचनबद्धता दोहराई  

राज्य में ग़ैर-अधिकृत ट्रैवल एजेंटों पर शिकंजा कसने का मुद्दा उठाया
सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को कोरी ना, चंडीगढ़ को पंजाब के हवाले करने के लिए कहा
ग्रामीण विकास फंड जारी करने की माँग, बी.बी.एम.बी. और पंजाब यूनिवर्सिटी के स्वरूप में बदलाव करने की कोशिशों का सख़्त विरोध
एन.एस.जी. केंद्र स्थापित करने, ड्रोनों के लिए सैंटर ऑफ ऐक्सीलैंस बनाने और पठानकोट से फ्लाईटें शुरू करने की प्रक्रिया तेज़ करने की माँग
बाढ़ राहत नियमों को सुधारने की वकालत, अनाज की खरीद का बकाया तुरंत जारी करने की माँग
राज्य को और अधिक वित्तीय शक्तियाँ देने की माँग,
संविधान के मुताबिक कायम हुए संतुलन को हर हाल में कायम रखने पर ज़ोर
अमृतसर, 26 सितम्बर:
   पंजाब के हितों की रक्षा के लिए राज्य सरकार की दृढ़ वचनबद्धता को दोहराते हुए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता अधीन हुई उत्तरी ज़ोनल कौंसिल की 31वीं बैठक में राज्य के अलग-अलग मुद्दों को ज़ोरदार ढंग से उठाया।
   बैठक की शुरुआत में मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार और पंजाब के लोगों की केंद्रीय गृह मंत्री और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों का स्नेहपूर्ण स्वागत किया। उत्तरी ज़ोनल कौंसिल की 31वीं बैठक पवित्र शहर में करवाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय का धन्यवाद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस पवित्र नगरी का समूची मानवता के दिलों में गहरा सम्मान है, जहाँ हर रोज़ एक लाख श्रद्धालु माथा टेक कर हरेक के भले के लिए प्रार्थना करते हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि अतीत में यह शहर कारोबारी सरगर्मियों का केंद्र रहा है और राज्य सरकार के प्रयासों के स्वरूप यह शहर जल्दी ही मध्य एशिया और उससे पार की मंडियों के लिए प्रवेश द्वार बनेगा।
   मेहनती और बहादुर पंजाबियों ने पाँच नदियों की इस धरती पर इतिहास के कई पन्ने पलटते हुए देखे हैं। देश के अन्न भंडार के तौर पर नाम कमाने के साथ-साथ पंजाब को देश की खडग़भुजा होने का भी गर्व हासिल है और पंजाबियों को विश्व भर में अपनी बहादुरी, सहनशीलता और उद्यमी होने की भावना के कारण जाना जाता है। हमारे लिए यह बड़े गर्व की बात है कि मेहनती पंजाबी, जो दुनिया भर में अपने उद्यमी कौशल, सहनशीलता और कुशलता के कारण जाने जाते हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि उत्तरी ज़ोनल कौंसिल हमारे आर्थिक विकास के लिए अंतरराज्यीय सहयोग के स्तर को बढ़ाने के लिए यह बहुत बढिय़ा प्लेटफॉर्म है। उन्होंने कहा कि यह हम सभी के हित में है कि हम एकसाथ बैठें और इस क्षेत्र, जो भौगोलिक तौर पर ज़मीनी हदों और सरहदों के साथ जुड़ा होने के कारण हमेशा नुकसान में रहा है, के सामाजिक-आर्थिक विकास की बेहतरीन संभावनाएं ढूँढें।
 मुल्क में सही मायनों में संघीय ढांचे की ज़रूरत की वकालत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि समूचे राजनीतिक परिपेक्ष्य में यह बात महसूस की जा रही है कि राज्यों को और ज्यादा वित्तीय एवं राजनीतिक शक्ति दी जाएँ। उन्होंने कहा कि इस पक्ष पर सभी एकमत हैं कि राजनीतिक पार्टियों की जंजाल से ऊपर उठकर राज्य सरकारों को अपनी विकास प्राथमिकताओं के चयन और राजस्व के लिए काम करने के लिए ज़्यादा छूट देने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि संघवाद हमारे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है, परन्तु बदकिस्मति से पिछले 75 सालों में इस अधिकार पर केंद्रीयकरण का रुझान हावी रहा है। भगवंत सिंह मान ने कहा, ‘‘यह बात हर कोई जानता है कि आधुनिक युग में राज्य सरकारें अपने लोगों की समस्याओं को समझने और हल करने के लिए ज़्यादा बेहतर स्थिति में हैं।’’
 भाखड़ा ब्यास प्रशासनिक बोर्ड (बी.बी.एम.बी.) में राजस्थान को मैंबर नियुक्त करने की माँग पर ज़ोरदार विरोध करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब राज्य पुनर्गठन एक्ट 1966 के प्रस्तावों के अधीन बी.बी.एम.बी. का गठन हुआ और यह एक्ट मूलभूत रूप से दो उत्तराधिकारी राज्यों पंजाब और हरियाणा के मसलों के बारे में है। इस एक्ट के सभी प्रस्तावों के साथ राजस्थान और हिमाचल प्रदेश या किसी अन्य राज्य का कोई सम्बन्ध नहीं है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इन कारणों से वह भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में राजस्थान या हिमाचल प्रदेश से किसी तीसरे मैंबर को शामिल करने के प्रस्ताव का सख़्ती से विरोध करते हैं।
 शानन पावर हाऊस प्रोजैक्ट का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने दुख से कहा कि हिमाचल प्रदेश द्वारा जोगिन्दरनगर में शानन पावर हाऊस को स्थानांतरित करने का मुद्दा उठाया गया है, जिसके लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि साल 1925 में मंडी के राजा ने इस प्रोजैक्ट के लिए 99 सालों के लिए ज़मीन लीज़ पर दी थी, जिसकी समय-सीमा साल 2024 में ख़त्म हो रही है। उन्होंने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि इस मुद्दे को उठाया गया जबकि यह प्रोजैक्ट पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 के उपबंधों के अंतर्गत पंजाब राज्य बिजली बोर्ड को सौंपा गया था। पंजाब पुनर्गठन एक्ट संसद का एक्ट है जिससे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्य बने। जि़क्रयोग्य है कि इसी एक्ट ने नीचे की ओर बस्सी पावर हाऊस (उल हाइडल प्रोजैक्ट पड़ाव-2) की मलकीयत और कंट्रोल हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड को सौंपी है। यह स्थिति आधी सदी से अधिक समय से भारत सरकार द्वारा बिना कोई छेड़छाड़ के कायम रखी गई है। उन्होंने आगे कहा कि पंजाब राज्य बिजली बोर्ड ने साल 1975 से 1982 तक अपने खर्चे पर प्रोजैक्ट का विस्तार किया और इसकी क्षमता 48 मेगावाट से बढ़ाकर 110 मेगावाट की। भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह मामला केंद्रीय बिजली मंत्रालय के समक्ष विचाराधीन है। मुख्यमंत्री ने उम्मीद अभिव्यक्त की कि भारत सरकार उपरोक्त और सही कानूनी स्थिति बरकरार रखेगी। उन्होंने कहा कि शानन पावर हाऊस की मलकीयत के सम्बन्ध में लिया गया कोई भी अन्य स्टैंड एक्ट के उलट होगा और पंजाब एवं इसके लोगों के साथ बहुत बड़ी बेइन्साफ़ी होगी।
 बी.बी.एम.बी. में सिंचाई और ऊर्जा के सदस्यों के पदों पर सीधे तौर पर खुली भर्ती द्वारा भरने के कदम की सख़्त विरोधता की। उन्होंने कहा कि 23 फरवरी, 2022 को बी.बी.एम.बी. (संशोधन) नियम केंद्र के ऊर्जा मंत्रालय ने जारी किए थे, जिसके मुताबिक सिंचाई और ऊर्जा के सदस्यों के पद खुली भर्ती के द्वारा सीधे तौर पर भरे जाएंगे। भगवंत सिंह मान ने इसकी विरोधता करते हुए कहा कि इन नये नियमों ने पुरानी व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ की है, जिसके मुताबिक मैंबर ऊर्जा हमेशा पंजाब से नियुक्त होता था, जबकि मैंबर सिंचाई हरियाणा से नियुक्त होता था।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि नयी व्यवस्था में पंजाब से कोई भी इंजीनियर मैंबर ऊर्जा के पद के लिए आवेदन करने के योग्य नहीं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि साल 2022 से पहली व्यवस्था बहाल की जाए क्योंकि बी.बी.एम.बी में पंजाब का सबसे बड़ा योगदान है। यहाँ तक कि बी.बी.एम.बी. का गठन भी पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 के अंतर्गत हुआ था। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री से अपील की कि वह केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को बी.बी.एम.बी का पक्का चेयरमैन नियुक्त करने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को हिदायत दें क्योंकि यह संस्था चेयरमैन और सदस्यों की पक्की नियुक्ति की अनुपस्थिति में अतिरिक्त जि़म्मेदारी सौंप कर चलाई जा रही है।
 राजस्थान द्वारा भाखड़ा डैम और पौंग डैम में जल भंडार का स्तर बरकरार रखने की की जा रही माँग के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि तकनीकी तौर पर जब यह दोनों डैमों का डिज़ाइन तैयार किया गया था तो उस समय पर भाखड़ा डैम की असली ऊँचाई 1685 फुट थी और पौंग डैम की ऊँचाई 1400 फुट थी। उन्होंने कहा कि साल 1988 के समय के दौरान पंजाब ने कई बार बाढ़ का सामना किया और उसके बाद भारत सरकार और सी.डब्ल्यू.सी. ने एक फ़ैसला लिया और भाखड़ा एवं पौंग डैमों का एफ.आर.एल. का स्तर क्रमवार 5 फुट और 10 फुट घटा दिया गया था। यहाँ यह भी बताने योग्य है कि सतलुज या ब्यास नदियों का बाढ़ का पानी हरियाणा या राजस्थान या किसी अन्य राज्य को नहीं जाता। इस कारण पंजाब को साल 1988 में, साल 2019 में, इस समय के दरमियान और हाल ही में कुछ पहले पंजाब को बाढ़ के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में जब राजस्थान से संकट के समय में पंजाब सरकार को कोई सहयोग नहीं मिलता तो डैमों के पूरे जल भंडार के स्तर को बढ़ाना अनुचित है।
 मुख्यमंत्री ने भारत सरकार के बिजली मंत्रालय द्वारा 15 मई, 2023 को अपने पत्र के द्वारा, बी.बी.एम.बी. के चेयरमैन को हिमाचल प्रदेश द्वारा जल सप्लाई और सिंचाई योजनाओं के लिए पानी निकालने के बारे में एन.ओ.सी. सर्टिफिकेट लेने की शर्तों में ढील देने के जारी किए गए निर्देशों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा बी.बी.एम.बी. को जारी किए गए निर्देश, पंजाब राज्य को स्वीकार नहीं हैं और भारत सरकार द्वारा इस पर फिर विचार किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि जल समझौतों के मद्देनजऱ, सतलुज और ब्यास नदी में से हिमाचल प्रदेश राज्य को पानी का वितरण करने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि बी.बी.एम.बी. का काम रोपड़, हरीके और फिऱोज़पुर में डैम, जल भंडारों, नंगल हाइडल चैनल और सिंचाई हैड्डवर्कस का केवल प्रबंधन, रख-रखाव और संचालन करना है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट के अधीन बी.बी.एम.बी. को नदियों में से पानी हिस्सेदार राज्यों के अलावा किसी अन्य राज्य को देने का अधिकार नहीं है और हिमाचल प्रदेश तो हिस्सेदार राज्य भी नहीं है।
 बाढ़ राहत के नियमों में बदलाव की ज़ोरदार वकालत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब ने इस साल पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश पडऩे का बहुत नुकसान बर्दाश्त किया है। पहाड़ी इलाकों में मूसलाधार बारिश के कारण राज्य के 16 जिलों में बाढ़ आने के कारण जान-माल का बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि बदकिस्मति से जो राज्य पंजाब से पानी में हिस्सा मांगते हैं, वह राज्य इस समय के दौरान पानी लेने के लिए भी तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि भारी बाढ़ से खेतों और अन्य इलाकों का बड़े स्तर पर नुकसान हुआ, जिससे आम जन-जीवन पटरी से उतर गया, परन्तु लोगों को दिया जाने वाला मुआवज़ा बहुत कम है। बाढ़ पीडि़त लोगों को वित्तीय सहायता देने के नियमों में ढील देने की अपील करते हुए भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य के आपदा प्रबंधन फंड में फंडों की कोई कमी नहीं है और नुकसान के मुआवज़े के लिए नियमों में ढील देने की ज़रूरत है, जिससे लोगों को पूरा मुआवज़ा दिया जा सके।
 मुख्यमंत्री ने फिर दोहराया कि पंजाब के पास किसी राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं। उन्होंने कहा कि सतलुज यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) नहर के बजाय यमुना सतलुज लिंक (वाई.एस.एल.) के प्रोजैक्ट पर सोच विचार करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सतलुज नदी में तो पहले ही पानी नहीं और इसमें से किसी अन्य को पानी की बूँद देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब को तो बल्कि सतलुज नदी के द्वारा गंगा और यमुना से पानी की सप्लाई करनी चाहिए।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि सतलुज यमुना लिंक नहर पंजाब के लिए बहुत ही ‘जज़्बाती मसला’ है और इस नहर के निर्माण से कानून-व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह एक राष्ट्रीय समस्या बन जायेगी, जिसका प्रभाव हरियाणा और राजस्थान भी भुगतेंगे। उन्होंने कहा कि पंजाब के पास हरियाणा के साथ साझा करने के लिए कोई अतिरिक्त पानी नहीं है और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार पानी की मौजूदगी का पुन: मुल्यांकन करना ज़रूरी है। यमुना के पानी समेत नयी शर्तें और बदले हुए हालात के अनुसार नये ट्रिब्यूनल की स्थापना करना ही पानी के विवाद का एकमात्र समाधान है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब के 76.5 प्रतिशत ब्लॉकों (153 में से 117) में भूजल के निकास का स्तर 100 प्रतिशत से अधिक है, जबकि हरियाणा में 61.5 प्रतिशत (143 में से 88) ब्लॉक प्रभावित हैं।
 मुख्यमंत्री ने रावी और ब्यास नदियों की तरह यमुना नदी भी पुनर्गठन से पहले पुराने पंजाब में से बहती थी। हालाँकि, नदियों के पानी का वितरण करते समय पंजाब और हरियाणा के बीच यमुना के पानी को नहीं माना गया था, जबकि वितरण के लिए रावी और ब्यास के पानी को ध्यान में रखा गया था। उन्होंने कहा कि यमुना के पानी के वितरण के लिए बातचीत में पंजाब सहयोग के लिए विनती करता आ रहा है, परन्तु हमारी विनती को इस आधार पर नहीं माना गया कि पंजाब का कोई भौगोलिक क्षेत्र यमुना बेसिन में नहीं आता है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि हरियाणा रावी और ब्यास नदियों का बेसिन राज्य नहीं है, परन्तु पंजाब को इन नदियों का पानी हरियाणा के साथ साझा करने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने आगे कहा कि यदि हरियाणा को रावी-ब्यास का पानी पंजाब में से निकला राज्य बनकर मिलता है, तो उसी बराबरी के सिद्धांत के आधार पर यमुना के पानी को भी पंजाब के साथ साझा किया जाना चाहिए।
 पाकिस्तान को बेकार जाते उज्ज और रावी नदियों के पानी के प्रयोग की वकालत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने बहुत समय पहले यह प्रस्ताव दिया था कि रावी नदी के साथ-साथ बराज का निर्माण किया जाये, जो नदी उच्च और रावी नदी के सुमेल वाली जगह मकौड़ा पत्तन तक बने जो भारत-पाकिस्तान सरहद के चार किलोमीटर के दायरे में आती है। इसके अलावा इस पानी का प्रयोग करने और डिस्चार्ज को यू.बी.डी.सी. कैनाल सिस्टम के कलानौर और रमदास डिस्ट्रीब्यूट्री सिस्टम की तरफ मोडऩे का प्रस्ताव भी रखा गया था, जिससे इस सिस्टम को ग़ैर-निरंतर से शाश्वत बनाया जा सके। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इस प्रोजैक्ट को जल्दी मंजूरी देनी चाहिए और इस काम को तेज़ी से करने की इजाज़त दी जाये।
 पन- बिजली प्रोजेक्टों पर हिमाचल प्रदेश द्वारा वॉटर सैस लगाना
 हिमाचल प्रदेश द्वारा हाईड्रो पावर प्रोजैक्टों पर वाटर सैस लगाने का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अंतर- राज्यीय नदी पानी विवाद एक्ट, 1956 की धारा 7 में कहा गया है कि कोई भी राज्य सरकार अन्य राज्य या उसके निवासियों से कोई अतिरिक्त दर या फीस नहीं लेगी, यदि इसका आधार राज्य की सीमा में पड़ती अंतर- राज्यीय नदी के पानी की देखभाल, प्रबंधन या प्रयोग के लिए हो। उन्होंने कहा कि इस कारण हिमाचल प्रदेश केवल इस लिए सैस नहीं लगा सकता क्योंकि भाखड़ा और ब्यास प्रोजैक्ट पावरहाउस इसके क्षेत्र की सीमा के अंदर स्थित हैं।
 हिमाचल प्रदेश द्वारा चक्की नदी के पानी को मोडऩे के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की सरकार चक्की नदी में से करीब 127 क्यूसिक पानी हिमाचल प्रदेश में ले जाने के लिए नहर बनाने के बारे में विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि जल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग, पंजाब ने चक्की नदी के पानी को पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों में दूर-दराज के इलाकों में स्थित गाँवों को पीने वाले पानी की सप्लाई के तौर पर देने के लिए 7 स्कीमें चलाई हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि गर्मियों के मौसम में चक्की नदी में बहुत कम पानी होता है और यदि पानी को हिमाचल की ओर मोड़ दिया जाता है तो नदी में पानी की कमी और अधिक बढ़ेगी एवं 35 गाँवों के लिए चलाई गई जल सप्लाई स्कीमों को बहुत प्रभावित करेगा, जिस कारण भूजल का स्तर और भी घटेगा।
 पंजाब यूनिवर्सिटी को ग्रांटें जारी करने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी का पंजाब के लोगों के साथ गहरा सम्बन्ध है। विभाजन के बाद यह लाहौर से पंजाब के होशियारपुर और फिर हमारी राजधानी चंडीगढ़ आकर स्थापित हुई। साल 1966 में पुनर्गठन एक्ट के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चार हिस्सेदारों जैसे कि केंद्र, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के साथ अंतर- राज्यीय बॉडी कॉर्पोरेट बन गई। यूनिवर्सिटी के खर्चे केंद्र (40 प्रतिशत) के साथ तीन हिस्सेदार राज्यों ( 20:20:20) द्वारा बराबरी में साझे किए जाने थे। उन्होंने कहा कि हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों ने क्रमवार साल 1973 और 1975 में पंजाब यूनिवर्सिटी से अपने कॉलेज वापस ले लिए और अपनी यूनिवर्सिटियाँ स्थापित कर लीं और पंजाब यूनिवर्सिटी को फंड देना बंद कर दिया। भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह केवल पंजाब ही है जिसने पिछले 50 सालों से इस यूनिवर्सिटी को मदद दी और इसके प्रसार में योगदान दे रहा है। अब इस पड़ाव पर हमें यह समझ नहीं आ रहा है कि हरियाणा अपने कॉलेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी के साथ क्यों जोडऩा चाहता है, जबकि वह पहले ही कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, (A+ NAAC मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी) के साथ पिछले 50 सालों से मान्यता प्राप्त है। उन्होंने सवाल किया कि पिछले 50 सालों से पंजाब यूनिवर्सिटी को नजरअन्दाज करने वाले हरियाणा के लिए अब इसकी मान्यता प्राप्त करने के लिए कौन से हालात बदल गए हैं? भगवंत सिंह मान ने कहा कि जहाँ तक पंजाब यूनिवर्सिटी के फंडों का सम्बन्ध है, पंजाब ने हमेशा यूनिवर्सिटी को वित्तीय सहायता दी है और भविष्य में भी पंजाब यूनिवर्सिटी को आपसी सलाह-मश्वरे की प्रक्रिया के अंतर्गत ज़रुरी फंड मुहैया करवाने के लिए वचनबद्ध है।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी को साल 2017 में भारत सरकार द्वारा अंतिम रूप में दिए संशोधित फॉर्मूले के अनुसार ग्रांट-इन-एड प्रदान करने की वचनबद्धता को पंजाब सरकार द्वारा पूरा किया गया, जिसके अंतर्गत 188.31 करोड़ रुपए के बकाया हिस्से के विरुद्ध सरकार ने 2022-23 तक 261.96 करोड़ रुपए जारी किए हैं, जिससे न केवल घाटे को पूरा किया जा सके, बल्कि पंजाब यूनिवर्सिटी के कांस्टीचूऐंट कॉलेजों के लिए अतिरिक्त अनुदान की व्यवस्था भी की जा सके। उन्होंने बताया कि साल 2023-24 के लिए उन्होंने सरकार ने बजट में 47.06 करोड़ रुपए मंज़ूर किये थे, परन्तु ग्रांट-इन-एड को बढ़ाकर 94.13 करोड़ रुपए कर दिया, जिससे यूनिवर्सिटी द्वारा यू.जी.सी. स्केलों को लागू करने के कारण वेतन में वृद्धि को लागू किया जा सके। भगवंत सिंह मान ने कहा कि सरकार ने दो नये होस्टल बनाने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी के लिए 48.92 करोड़ रुपए मंज़ूर किये। एक होस्टल लडक़ों के लिए और दूसरा लड़कियों के लिए बनना है।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि वैसे तो पंजाब ने अपनी वचनबद्धता को पूरा किया है परन्तु केंद्र सरकार ने यू.जी.सी. स्केलों को अपनाने के कारण पंजाब यूनिवर्सिटी को 51.89 करोड़ रुपए की बढ़ी हुई ग्रांट-इन-एड के हिस्से को अभी तक मंज़ूरी नहीं दी। उन्होंने गृह मंत्री से अपील की कि इस अतिरिक्त अनुदान को जल्दी से जल्दी जारी किया जाये। उन्होंने पंजाब सरकार के स्टैंड को दोहराते हुए कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी हमारी यूनिवर्सिटी है और हम भविष्य में भी इसकी सहायता और फंड जारी रखेंगे।
 पठानकोट में एन.एस.जी. का रीजनल सैंटर को जल्दी स्थापित करने की माँग करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब सरहदी राज्य है जिस कारण राज्य सरहद पार से आतंकवादी हमलों का हमेशा शिकार होता है, जिससे देश की सुरक्षा, एकता, अखंडता और प्रभुसत्ता खतरे में पड़ती है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किये गए ऐलान के मुताबिक पठानकोट जि़ले में एन.एस.जी. हब स्थापित किया जाना चाहिए। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इस मसले को लटकाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि देश की सरहदों की रक्षा के लिए यह समय की ज़रूरत है।
 ड्रोनों के खतरे का मुकाबला करने के लिए प्रौद्यौगिकी विकसित करने की अपील करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में ड्रोनों के लिए सैंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया जाना चाहिए, क्योंकि एक सरहदी राज्य होने के नाते ड्रोन पंजाब पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनते हैं, जैसे कि ड्रोन की गतिविधि और रिक्वरी में साल- दर- साल वृद्धि दर्शाती है। उन्होंने कहा कि ड्रोन मुख्य तौर पर दुश्मण ताकतों द्वारा जासूसी, हथियारों/ नशीले पदार्थों की सरहद पार तस्करी और आतंकवादी हमलों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं और ड्रोन प्रौद्यौगिकी के अलग- अलग पहलुओं पर मौजूदा क्षमता बहुत कारगर नहीं।
 देश के अंदर अन्य राज्यों से हथियारों की तस्करी का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मसला राज्य में अमन-कानून के लिए बड़ा ख़तरा है। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि देश के अंदर से ख़ासकर मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से सरहद पार से भी ज़्यादा हथियारों की तस्करी होती है। इससे सख़्ती से निपटने की ज़रूरत है, जिससे देश की सुरक्षा को कोई ख़तरा पैदा न हो।
 पंजाब पर सैनिक बलों का खर्चा डालने संबंधी धारा सुधारने की माँग उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सरहदी राज्य होने के नाते पंजाब आतंकवाद और नशों पर देश की जंग लड़ रहा है परन्तु बड़े दुख की बात है कि देश की की तरफ़ से जब भी कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए राज्य को सैनिक बलों की ज़रूरत होती है तो हमें इसके बदले में भारी फीस देने के लिए कहा जाता है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जिस राज्य के पुत्र फौज की सेवा के दौरान देश की रक्षा के लिए शहीद हो गए हों, उस राज्य से फीस माँगी जाती है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि जहाँ तक पंजाब का सम्बन्ध है, अर्ध सैनिक बल देने के बदले किराया वसूलने की धारा को हटा देना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य को सैनिकों की कंपनियाँ देने के लिए केंद्र को फराखदिली दिखानी चाहिए, क्योंकि इस समय पर राज्य द्वारा की जाने वाली माँग के उलट कम फोर्स तैनात की जाती है, जोकि अनुचित है।
 बासमती के निर्यात पर शर्तों का ताज़ा मामला उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मसला सीधे तौर पर पंजाब के किसानों के साथ जुड़ा है, क्योंकि केंद्र सरकार ने बासमती के न्युनतम निर्यात कीमत 1200 डॉलर प्रति टन तय कर दी है, जो फ़सल के घरेलू भाव को बुरी तरह प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला किसानों और कारोबारियों की आर्थिक हालत को बड़ी चोट पहुँचाएगा। खेती लागतें बढऩे और कम समर्थन मूल्य के कारण राज्य के मेहनतकश किसान पहले ही संकट में से गुजऱ रहे हैं। राज्य देश में से सबसे अधिक बासमती पैदा करता है और केंद्र का यह फ़ैसला फ़सलीय विविधता को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को रास्ते से उतार देगा।
 ग्रामीण विकास फंड जारी करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री के दख़ल की माँग करते हुए मुख्यमंत्री ने अफ़सोस के साथ कहा कि यह फंड लंबे समय से रुके हुए हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने पिछली सरकारों द्वारा खड़े किये गए सभी संदेह दूर कर दिए हैं, परन्तु बड़े दुख की बात है कि केंद्र ने अभी तक फंड जारी नहीं किये। भगवंत सिंह मान ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के साथ भी इस मसले पर निजी तौर पर मुलाकात की थी, जिन्होंने भरोसा दिया था कि यह फंड जल्दी ही जारी कर दिए जाएंगे, परन्तु अभी तक कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य के 5637.4 करोड़ रुपए से अधिक का ग्रामीण विकास फंड जारी नहीं किया।
 मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि पंजाब सरकार द्वारा रीजनल कनैक्टीविटी स्कीम उड़ान को सफलतापूर्वक लागू किया है। राज्य सरकार के ठोस प्रयासों के स्वरूप अब आदमपुर से नांदेड़, बैंगलुरु, कोलकाता, दिल्ली, गोआ और हिंडन के लिए उड़ानें शुरू की गई हैं। इसी तरह रीजनल कनैक्टीविटी स्कीम-2023 के अंतर्गत दिल्ली से बठिंडा और लुधियाना एयरपोर्ट के लिए उड़ानों की आज्ञा दी गई है। चाहे आदमपुर, साहनेवाल और बठिंडा हवाई अड्डे का मसला हल हो गया है परन्तु पठानकोट हवाई अड्डे का मामला अभी बाकी है। भारत सरकार को जल्द से जल्द पठानकोट हवाई अड्डे को भी रीजनल कनैक्टीविटी स्कीम- उड़ान- 2023 के अंतर्गत कवर करने की विनती की गई है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि लोगों की धार्मिक भावनाओं के मद्देनजऱ इस स्कीम के अधीन आदमपुर से वाराणसी और अमृतसर से नांदेड़ के लिए उड़ानें शुरू करने की ज़रूरत है।
 चंडीगढ़ को पंजाब के हवाले करने का मसला ज़ोरदार ढंग से उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब की राजधानी को आधिकारित तौर पर 21 सितम्बर, 1953 को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया था और इसका उद्घाटन भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजिन्द्र प्रसाद जी द्वारा 7 अक्तूबर, 1953 को किया गया था। उन्होंने कहा कि हालाँकि, 1966 में राज्य के विभाजन के समय पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 के सेक्शन 4 के उपबंधों के अंतर्गत चंडीगढ़ शहर को 1 नवंबर, 1966 केंद्रीय शासित प्रदेश बना दिया गया था। अब तक यही स्थिति बनी रही है।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि चंडीगढ़ शहर को पंजाब की ऐक्वायर की गई ज़मीन पर पंजाब की नयी राजधानी के तौर पर बसाया गया। उन्होंने कहा कि पंजाब की राजधानी के तौर पर इसका दर्जा बहाल करने का मामला अभी तक लटका हुआ है, जिससे हरेक पंजाबी के मन को गहरी ठेस पहुँचती है। उन्होंने कहा कि चाहे यह मसला अलग- अलग मंचों पर विचार अधीन है, परन्तु अलग-अलग स्तर पर इस मसले को उठाने के बावजूद, पंजाब की लम्बे समय से लटकती आ रही इस माँग का निपटारा नहीं हुआ।
 मानव संसाधन को विदेश भेजने में लगे ट्रैवल एजेंटों और टूरिस्ट वीज़ा की सुविधा देने वालों के दरमियान बने अपवित्र गठजोड़ का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि भोले-भाले नौजवान विकसित मुल्कों में सैटल होने के आकर्षण के कारण अक्सर इन एजेंटों का शिकार हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह ट्रैवल एजेंट इन नौजवानों को विदेश में पक्की नौकरी के वादे का लालच देते हैं, परन्तु उनको केवल टूरिस्ट वीज़ा मुहैया करवाते हैं और वापस आने के समय पर उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लेते हैं और उनको एजेंटों के रहमो-करम पर छोड़ देते हैं। भगवंत सिंह मान ने कहा कि इस बात की सख़्त ज़रूरत है कि लोगों को विदेश भेजने वाले ट्रैवल एजेंटों की रजिस्ट्रेशन उसी राज्य की सरकार के पास होनी अनिवार्य की जाये, जिस राज्य में इन ट्रैवल एजेंटों के पास जाने के इच्छुक लोग रहते हैं।
भगवंत सिंह मान ने कहा कि पंजाब सरकार पहले ही ऐसे ट्रैवल एजेंटों को रजिस्टर कर रही है जो केवल टूरिस्ट वीजों के साथ ही डील करते हैं, इसलिए सरकार इन ट्रैवल एजेंटों की गतिविधियों पर साझे तौर पर निगरानी रखने के लिए बेहतर स्थिति में होगी। उन्होंने कहा कि इंडियन इमीग्रेशन एक्ट यह व्यवस्था करता है कि विदेशें में ग़ैर- कौशल रोजग़ार हासिल करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को प्रोटैक्टर ऑफ ऐमीग्रेंट्स के पास रजिस्टर किया जाना चाहिए और वर्क कॉन्ट्रैक्ट जमा किया जाना चाहिए। यदि इस व्यवस्था को सख़्ती से लागू किया जाता है तो यह आम वीज़ा प्रोसेसिंग ट्रैवल एजेंटों को वर्क वीज़ा में शामिल होने से रोकेगा। उन्होंने बताया कि जि़ला प्रशासन ट्रैवल एजेंटों की गतिविधियों पर नजऱ रखने के लिए बेहतर ढंग से लैस है, इसलिए प्रोटैक्टर ऑफ ऐमीग्रेंट्स की शक्तियाँ भी जि़ला मैजिस्ट्रेट या जि़ला के एस.पी. को दी जानी चाहीए हैं।
 अनाज की खरीद के बदले खर्चे की अदायगी के बकाए का मुद्दा उठाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कजऱ्े के बोझ अधीन दबा पंजाब का किसान आज केंद्र सरकार की नजऱों में सबसे अधिक अनदेखा हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि देश का पेट भरने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को यकीनी बनाने वाले पंजाब के किसानों के प्रति केंद्र सरकार ने सौतेली माँ वाला सलूक अपनाया हुआ है। उन्होंने कहा कि पिछले सालों के दौरान पंजाब ने अपनी ज़रूरत से भी अधिक अनाज पैदा किया, जिससे मुल्क का कोई भी नागरिक भूखा न सोए। अनाज भंडार के लिए राज्य ने खाद और कीटनाशकों का प्रयोग भी किया। देश के ख़ातिर राज्य के किसानों ने बेशकीमती कुदरती स्रोत पानी और जऱखेज़ ज़मीन भी दाव पर लगा दिए।
 मुख्यमंत्री ने कहा कि बदकिस्मति से केंद्र सरकार द्वारा एफ.सी.आई. के लिए अनाज की खरीद के बदले में पंजाब को खर्चे की भरपायी जानबूझ कर नहीं की जा रही। उन्होंने कहा कि हरेक साल राज्य का घाटा बढ़ता जा रहा है और अब सालाना हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह कोरा मज़ाक है कि केंद्र सरकार अपने नागरिकों को सब्सिडी वाला मुफ़्त अनाज मुहैया करवा रही है जबकि इस अनाज की लागत का बड़ा हिस्सा पंजाब सरकार ही बर्दाश्त कर रही है।
 समूह पक्षों को संविधान के अनुसार कायम हुए मौजूदा संतुलन को हर हाल में कायम रखने की अपील करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में संतुलन बनाए रखने के लिए पहले ही स्वीकृत किये गए मसलों के साथ बिना वजह छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने उम्मीद अभिव्यक्त की कि पंजाब और पंजाब निवासियों के साथ जुड़े सभी मसलों को सुखदायक ढंग से हल कर लिया जायेगा। भगवंत सिंह मान ने राज्य और यहाँ के लोगों के हितों की श्रखा के लिए राज्य सरकार की वचनबद्धता को दोहराया।

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