पंजाब
*जिन्हें नोटा से भी कम वोट मिला, वे भाजपा को कितना मजबूत करेंगे पंजाब में*
संजीव पांडेय
क्या भारतीय जनता पार्टी को पंजाब हरियाणा जैसे राज्यों में अपने कैडरों पर भरोसा नहीं रह गया है ? हरियाणा में कांग्रेस नेता कुलदीप विश्नोई के बाद अब पंजाब विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से हारे पंजाब के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर पंजाब में भाजपा भरोसा करने जा रही है। अमरिंदर सिंह कांग्रेस में शामिल हो रहे है। अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे कुछ और कांग्रेसी भी भाजपा का दामन थामेंगे। सवाल तो यही है कि आखिर क्यों पंजाब में भाजपा एक चले हुए कारतूस पर भरोसा कर रही है? अमरिंदर सिंह की पार्टी को पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में नोटा से भी कम वोट पड़े थे। अमरिंदर सिंह पर तो अंतिम समय में कांग्रेस ने भी भरोसा नहीं किया था, उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था।
इसमें कोई शक नहीं है कि पंजाब में भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। राज्य में हिंदू नेताओं की जमात तो भाजपा के पास है लेकिन बहुसंख्यक सिक्खों का बडा चेहरा पंजाब भाजपा के पास नहीं है। निश्चित तौर पर पंजाब में भाजपा अमरिंदर सिंह के माध्यम से इस कमी को पूरा करना चाहती है। लेकिन सवाल यही है कि राज्य में अमरिंदर सिंह जब अपनी जमीन खो चुके है तो वे राज्य में भाजपा की मदद कितनी कर पाएंगे? बीते विधानसभा चुनावों में भाजपा का गठबंधन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के साथ हो गया था। दोनों मिलकर चुनाव लड़े थे। लेकिन दोनों पार्टियों के लिए चुनाव परिणाम बहुत ही बुरा रहा। अमरिंदर सिंह तो खुद बुरी तरह से चुनाव हार गए। उनकी पार्टी को बहुत ही कम मत मिले। साथ में लड़ रही भाजपा को भी काफी कम मत के साथ मात्र 2 सीटें पर जीत हासिल हुई। अमरिंदर सिंह की पार्टी तो एक भी सीट नहीं जीत पायी। भाजपा को तो राज्य चुनाव में 6.5 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को इतने भी मत नहीं मिले जिससे की चुनाव आयोग के वेबसाइट पर दर्ज आधिकारिक चुनाव परिणाम के चार्ट में उनकी पार्टी को मिले वोट प्रतिशत को दर्शाया जा सके। सच्चाई तो यह है कि अमरिंदर सिंहकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को राज्य में नोटा से भी कम वोट मिले थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में नोटा वोटों की संख्या 1,10,308 थी जबकि अमरिंदर सिंह की पार्टी को पूरे राज्य में मिले वोटों की संख्या 84,697 थी।
भाजपा को पंजाब में अमरिंदर सिंह के आने से मजबूती मिलना मुश्किल है। इससे पहले कांग्रेस के एक बड़ा हिंदू चेहरा सुनील जाखड को भी भाजपा में शामिल किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि राज्य में लंबे समय से जुड़े भाजपाई अमरिंदर सिंह की पार्टी में एंट्री को कैसे लेंगे यह देखने वाला है। हालांकि अमरिंदर सिंह की अपनी मजबूरियां है। अमरिंदर सिंह की उम्र काफी हो चुकी है। वे लंबे समय तक कैंपेन करने की स्थिति में नहीं है। 2017 में राज्य के दुबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद बतौर मुख्यमंत्री उनका प्रदर्शन बहुत बुरा रहा। उनके दामाद पर सीबीआई ने मुकदमा दर्द किया। उनके परिवार के स्विस बैंक एकाउंट को लेकर भी तमाम आऱोप लगे। राज्य में इस बात की खासी चर्चा रही कि वे केंद्रीय एजेंसियों के दबाव में थे, कांग्रेस उनसे नाराज थी। अंत में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें बदलने का फैसला लिया। हालांकि तबतक देर चुकी थी और 2022 में कांग्रेस की बुरी हार हुई। आम आदमी पार्टी की शानदार जीत हुई।
हालांकि यह तय है कि हेमंत विश्वा शर्मा की तरह से भाजपा के लिए अमरिंदर सिंह लाभदायक नहीं होंगे। वे थक चुके है और उम्र का तकाजा है,80 साल से उपर के चुके है, कई बीमारियों से भी जूझ रहे है। उनका करिश्मा जो 2002 में था अब खत्म हो चुका है। राज्य में यह चर्चा आम है कि वे अपने परिवार को राजनीति में जिंदा रखने चाहते है, कांग्रेस ने उन्हें नकार दिया है, तो भाजपा उनका नया ठौक ठिकाना है। आम आदमी पार्टी और अकाली दल में उनके लिए कोई जगह नहीं है। भाजपा में शामिल होने का बाद अमरिंदर सिंह का मुख्य टास्क भाजपा के पक्ष में सिखों को लाना होगा, जिसकी संभावना न के बराबर है। हालांकि आजादी के बाद से ही पंजाब के सिखों के बीच भाजपा की कोई जगह नहीं बनी, सिख मतदाता अकाली दल और कांग्रेस के बीच बंटे रहे। लेकिन किसान आंदोलन ने भाजपा की इमेज पंजाब के सिखों के बीच और खराब कर दिया। केंद्र सरकार के रवैए से पंजाब के सिख काफी नाराज है क्योंकि उनका मुख्य पेशा किसानी है। दरअसल पंजाब के सिखों के भाजपा के प्रति नकारात्मक रवैये के कारण पंजाब भाजपा के पास बड़ा कोई सिख चेहरा आजतक नहीं उभर पाया। जो भी सिख नेता भाजपा के साथ जुड़ा, उसे सिखों ने नकारा है। हाल ही में सिखों को खुश करने के लिए भाजपा ने एक पूर्व पुलिस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा को पार्टी के संसदीय बोर्ड में जगह दी है। लेकिन लालपुरा का प्रभाव भी सिखों के बीच न के बराबर है। अब भाजपा पंजाब में दूसरे पार्टी से आयातीत सिख नेताओं को अपना चेहरा बनाना चाहती है, जिन्हें पंजाब की जनता ने कुछ महीनें पहले हुए चुनाव में बुरी तरह से नकार दिया था। मूल रुप से कई कांग्रेसी चेहरे इस समय भाजपा की शोभा बढा रहे है। इसमें केवल सिंह ढिल्लों, बलबीर सिंह सिदू आदि नेता शामिल है। लेकिन पंजाब में आम चर्चा यही है कि ये जो तमाम नेता भाजपा में शामिल हो रहे है, वे भाजपा प्रेम में भाजपा में नहीं जा रहे है। बल्कि ये आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के कोप से बचने के लिए भाजपा ज्वाइन कर रहे है। क्योंकि कांग्रेस सरकार के कई पूर्व मंत्रियों के खिलाफ राज्य विजिलेंस ब्यूरो ने जांच खोल रखी है। दो पूर्व मंत्री साधू सिंह धर्मसोत और भारत भूषण आशू भ्रष्टाचार के मामले में जेल जा चुके है। अमरिंदर सिंह के खिलाफ राज्य सरकार जांच कर सकती है। वैसे में इन पूर्व कांग्रेसियों को लगता है कि भाजपा में जाने से वे बच सकते है कि केंद्र सरकार का भय आम आदमी पार्टी के नेताओं पर खासा है।