कृषि-खाद्य प्रणाली और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी है महिलाओं और बाजार के बीच की कड़ियों को मजबूत बनानाः विशेषज्ञ
चंडीगढ़, 29 सितंबर 2023: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नारी शक्ति पर बल देते हैं और नई दिल्ली के जी20 सम्मेलन में भी नेताओं ने ’महिलाओं की अगुआई में विकास’ का आह्वान किया है; इस पृष्ठभूमि पर विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में भी अब लैंगिक समानता को लाने का आदर्श समय है। हाल ही में आयोजित एक वेबिनार में भाग लेने वाले कृषि लैंगिक अनुसंधानकर्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई की यदि महिलाओं की अगुआई में विकास को सही मायनों में धरातल पर उतारना है तो कृषि-खाद्य बाजारों में महिलाओं के लिए बेहतर अवसर मुहैया कराने होंगे। इसमें शामिल हैं- महिलाओं को वित्तीय सेवाओं/सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करना, उन्हें नेटवर्क बनाने में मदद देना और ऐसी नीतियां व नवाचार जमीनी स्तर पर लागू करना जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करें।
गौर तलब है कि 9 से 12 अक्टूबर 2023 तक नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय लैंगिक अनुसंधान सम्मेलन होने जा रहा है। इसी सम्मेलन की ओर बढ़ते हुए हरियाणा व पंजाब के पत्रकारों के लिए यह हालिया वेबिनार आयोजित किया गया था जिसका शीर्षक था ’अनुसंधान से असर तकः न्यायसंगत व लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर’। इस वेबिनार के वक्ताओं में शामिल विशेषज्ञ थेः डॉ सीमा जग्गी, सहायक महानिदेशक (मानव संसाधन विकास), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर); सब्दियो दिदो बाशुना, निदेशक-युवा, जेंडर व समावेशन, अलायंस फॉर अ ग्रीन रिवोल्यूशन इन अफ्रीका (एजीआरए); डॉ रहमा ऐडम, सामाजिक समावेशन व बाजार वैज्ञानिक, सीजीआईएआर; डॉ रंजीता पुस्कुर, अनुसंधान प्रमुख, सीजीआईएआर।
अक्टूबर में होने वाले सम्मेलन में इस विषय पर नई जानकारियां साझा की जाएंगी। लैंगिक समानता युक्त और सामाजिक रूप से समावेशी व लचीली खाद्य प्रणालियों की रचना के लिए अनुसंधान और अभ्यास में जो फासला है उसे दूर करने के लिए यह सम्मेलन एक पुल का काम करेगा। इस सम्मेलन की मेजबानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और सीजीआईएआर जेंडर इम्पैक्ट प्लैटफॉर्म द्वारा संयुक्त रूप से की जाएगी।
’’अनुसंधान अच्छी नीतियों की रीढ़ होता है और आईसीएआर महत्वपूर्ण अनुसंधान के मामले में अग्रिम मोर्चे पर रहती है। हमें गर्व है कि आईसीएआर ने इस विषय के लिए एक खास महिला केन्द्रित ’सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर वुमन इन ऐग्रीकल्चर’ का निर्माण किया है,’’ डॉ जग्गी ने कहा।
महिलाओं की चुनौतियों के सफल समाधान के लिए बाजारों में महिलाओं के सीमित अवसरों, उनकी मांगों व जरूरतों पर अनुसंधान की आवश्यकता है। ऐसे साक्ष्य व सिफारिशें तैयार करनी होंगी जिनसे भारत जैसे देशों में सक्षमकारी नीतियों के बारे में सूचित किया जा सके। ’’अनुसंधान की मदद से आकस्मिक मुद्दों की पहचान, आंकड़ों की कमी दूर करने, महिलाओं की चुनौतियों व अवसरों को चिन्हित करने हेतु वे साक्ष्य व मार्गदर्शन प्राप्त होते हैं जिनकी हमें जरूरत है। जो साक्ष्य हासिल किए जाएंगे उनका उपयोग समाधान एवं रास्ते प्रदान करने में किया जा सकता है जिन की मदद से खाद्य प्रणालियों में लैंगिक असमानताओं को कम किया जा सकेगा और सामाजिक समावेशन बढ़ाया जा सकेगा,’’ डॉ ऐडम ने कहा।
आज भारत में 1.35 करोड़ से 1.57 करोड़ के बीच उद्यम ऐसे हैं जिनका स्वामित्व महिलाओं के पास है; यह कुल उद्यमों का 20 प्रतिशत है, जाहिर है महिला उद्यमिता में विस्तार की बहुत गुंजाइश है। ’’भले ही यह संख्या बहुत बड़ी है, किंतु मौजूदा उद्यमों में ऐसे उद्यमों की तादाद बहुत बड़ी है जो एकल-व्यक्ति उद्यम की श्रेणी में आते हैं, जो लगभग 2.20 करोड़ से 2.70 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देते हैं। उच्च प्रदर्शन करने वाले देशों और भारतीय राज्यों से प्राप्त बेंचमार्क भारत के लिए एक अच्छा मापदंड मुहैया कराते हैं जिससे व्यापक तौर पर महिलाओं की उद्यमशीलता में तेजी लाई जा सकती है। ऐसे बेंचमार्क की दिशा में संख्या व गुणवत्ता को गति देकर 3 करोड़ से अधिक महिला स्वामित्व वाले उद्यम तैयार किए जा सकते हैं, जिनमें से 40 प्रतिशत महज़ स्व-रोज़गार से बढ़कर होंगे। इससे भारत में रोजगार की स्थिति में बड़ा बदलाव आएगा, लगभग 15 से 17 करोड़ नौकरियां पैदा होंगी। यह आंकड़ा बेहद अहम है क्योंकि अब से लेकर वर्ष 2030 तक हमारी काम करने लायक आबादी के लिए जितनी नई नौकरियों की जरूरत होगी यह आंकड़ा उनके 25 प्रतिशत हिस्से से भी अधिक है,’’ डॉ पुस्कुर ने कहा।
हरियाणा व पंजाब के संदर्भ में डॉ पुस्कुर ने उन अनेक अवसरों पर प्रकाश डाला जो इन राज्यों की महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं; जिनमें शामिल हैं- डेयरी उद्योग, कृषि में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की डीलरशिप, खाद्य प्रसंस्करण, जो बहुत मार्जिन देते हैं तथा कृषक उत्पादक संगठन।
अफ्रीकी देशों के अपने अनुभव साझा करते हुए बाशुना ने उन तीन बड़ी अड़चनों के बारे में बताया जो बाजारों में अवसर पाने की इच्छुक महिलाओं के सामने अवरोध पैदा करती हैं: पूंजी निवेश, वित्तीय योजना व नेटवर्क जैसी प्रतिस्पर्धी परिसम्पत्तियों तक सीमित पहुंच; उत्पादों व सेवाओं के लिए बाजार पहुंच का अभाव; तथा जेंडर के आधार पर रुकावटी नियमों समेत इस से संबंधित अन्य बाधाएं। ’’वित्त तक पहुंच को आसान बनाकर, सूक्ष्म व लघु उद्यमों को मजबूत बना कर, वित्तपोषण योजनाएं बना कर और क्षमता निर्माण – ये कुछ ऐसे उपाय हैं जो महिलाओं को कृषि-खाद्य बाजारों एवं मूल्य श्रृंखलाओं का हिस्सा बनने में मददगार साबित होंगे।’’
इस वेबिनार का संचालन सीजीआईएआर जेंडर इम्पैक्ट प्लैटफॉर्म की सम्प्रेषण सलाहकार मेरियन गडेबर्ग ने किया। कई पत्रकारों ने चर्चा में भाग लिया और जानकारीपूर्ण दृष्टिकोण साझा किए। इस वेबिनार को ग्रेमैटर्स कम्यूनिकेशंस तथा डेवलपमेंट कम्यूनिकेशंस प्लैटफॉर्म फिजीहा ने आयोजित किया था।