पंजाब

शिक्षकों के सम्मान के बिना समाज अधूरा: अशवनी जोशी

 नवांशहर/पंजाब:
नवांशहर से वरिष्ठ समाजसेवी अशवनी जोशी ने स्कूली अभिभावकों और शिक्षकों के पक्ष में सम्बोधन में कहा कि स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर चर्चाएं और सियासी बयानबाजी का जो दौर चल रहा है, समाज के लिए एक गंभीर विषय है। देखा जा रहा है कि अक्सर स्कूली शिक्षा को लेकर दावे और वादे होते रहे हैं, किये जा रहे हैं मगर जमीनी हालात बदलने का नाम नहीं ले रहे।
याद रहे कि वर्ष 2006 में पंजाब के गांव गांव में खुले निज्जी नॉन एफिलेटेड स्कूलों के विरुद्ध सरकार ने कुछ कदम उठाए थे और बंद करवाने की हालत बनाई थी। मगर उन्हीं प्राइवेट स्कूलों के एक समूह ने सरकार को चेतावनी दी थी के अगर यह प्राइवेट मॉडल स्कूल गांव गांव में जो खुले हैं अगर बंद कर दिया जाए तो सरकार के पास अपना शिक्षा देने का पर्याप्त ढांचा ही नहीं बचेगा। क्यों कि सरकार के पास तो पर्याप्त गिनती में स्कूल ही नहीं है!
नवांशहर से वरिष्ठ समाजसेवी अशवनी जोशी नेg बताया कि तब मैंने खुद पंजाब स्तरीय एसोसिएशन खड़ी करके बतौर प्रांतीय कन्वीनर की भूमिका निभाते हुए सरकार से आग्रह किया था कि किसी भी निजी प्राइवेट स्कूल जिसे सरकार दुकानें कहती थी को बंद ना किया जाए क्योंकि सरकार के पास खुद इतने सरकारी स्कूल नहीं जो सभी बच्चों को शिक्षा दे सके। आजादी के बाद अगर यह प्राइवेट स्कूल संस्थाएं ना होती तो आप हिसाब लगा सकते हैं कि हमारे बच्चे किस कदर की शिक्षा प्राप्त कर रहे होते? जोशी का कहना है कि इसलिए हमारे प्रांत में शिक्षा को लेकर जो योगदान छोटे और बड़े प्राइवेट स्कूलों का रहा है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके फलस्वरूप पंजाब में इन स्कूलों को एससोशिएट स्कूलों की मान्यता मिल सकी और छोटे छोटे यह प्राइवेट स्कूल पंजाब शिक्षा जगत में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
प्राइवेट स्कूलों का खर्चा उठा, अभिभावकों को राहत दे सरकार 
यह भी सच है कि सरकार ना तो इन निज्जी स्कूलों को कोई वित्तीय मदद देती है और ना ही कोई सस्ता कर्जा। न ही छात्रों के लिए दी जाने वाली ट्रांसपोर्ट को टैक्स फ्री करती है और ना ही इन प्राइवेट स्कूलों में दी जाने वाली बिजली सस्ती दी जाती है अर्थात इन प्राइवेट स्कूलों को सरकार किसी भी तरह से वित्तीय सहायता नहीं करती जिससे की स्कूली बच्चों पर फीस देने का बोझ घट सके।कुछ प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधकों एवं संस्थापकों का कहना है कि जब हम सब कुछ खरीद कर सेवा में देते हैं और शिक्षकों को तनख्वाह भी देने का काम करते हैं तो  छात्रों की शिक्षा पर किए जाने वाला जेब खर्च की अदायगी बच्चों के अभिभावकों की बजाए सरकार क्यों नहीं अदा करती ?
एक तरफ से यह बात सही भी है। अपने नागरिकों को अच्छी शिक्षा देना सरकार का कर्तव्य है तो बच्चों की शिक्षा का खर्चा संपूर्ण तौर से सरकार बच्चों के अभिभावकों को अदा करें।
शिक्षकों की तनखाह का अधिकार हनन क्यों?
शिक्षकों की तनखाह, मंहगाई के अनुपात से होनी चाहिए।
शिक्षक चाहे प्राइवेट स्कूल में हो या सरकारी स्कूल में, सभी एक तरह का सिलेबस पढ़ाते हैं तो उनकी तनख्वाह भी उसी तरह सरकार को अदा करनी चाहिए। इससे छात्रों पर फीस का बोझ कम होगा। नागरिक बच्चों को शिक्षा प्रदान कराने का  अपना कर्तव्य सरकार को
वास्तविक रूप में निभाना चाहिए। समय समय पर शिक्षकों का वेतन बढ़ा कर शिक्षकों की सेवा का सम्मान करना चाहिए। शिक्षकों के सम्मान के बिना समाज का सम्मान अधूरा ही रहेगा और कोई शिक्षा नीति पूर्ण सफल नहीं होगी।
 यहां तक प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों की बात आती है वे अपने अपने स्कूल का जैसा प्रबंधन खर्चा करते हैं जाहिर है कि छात्रों को उस खर्चे की अदायगी करनी पड़ेगी अगर स्कूलों में गुणवत्ता बनाए रखना है। क्योंकि इन स्कूलों को सरकार ना तो मुफ्त बिजली देती है ना इन के अध्यापकों को तनखाह देती है और ना ही स्कूल द्वारा दी गई अन्य सेवाओं की अदायगी करती है। प्रायः यही देखा गया है इन मसलों पर सियासत और सियासी वादे दावे ज्यादा होते हैं।

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