रंगमंच से अदाकारी की छठा बिखेरने वाली ‘विनोदिनी’ पर आधारित सुष्मिता मुखर्जी की 5वीं किताब ‘नटी
साल 1874 में 12 साल की उम्र में बिनोदिनी ने कलकत्ता नेशनल थियेटर में अपना पहला सीरियस ड्रामा रोल अदा किया. साल पढ़ के चौंक गए होंगे ना आप? चौंकना बनता भी है. क्योंकि ये वो दौर था जब थियेटर या सिनेमा में महिला का कैरेक्टर भी पुरुष एक्टर ही निभाते थे. उस जमाने में फिल्मों में काम करने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को ही वैश्या के रूप में देखा जाता था. उस दौर में थियेटर पर एक्टिंग का जलवा बिखेरने वाली क्रांतिकारी एक्ट्रेस थीं, बिनोदिनी दासी।
नटी विनोदिनी के नाम से मशहूर हुई रंगमंच पर अपना जलवा बिखेरने वाली विनोदिनी दासी पर आधारित किताब ‘नटी – एक मूल नाट्य’ अब हम सभी के लिए उपलब्ध है। इसका लेखन 40 वर्षों से अधिक का अभिनय अनुभव रखने व साठ से अधिक फिल्मों में काम कर चुकीं एनएसडी) से स्नातक प्रख्यात अभिनेत्री व लेखिका सुष्मिता मुखर्जी ने किया है। यह उनकी पांचवी किताब है, जिसमें उन्होंने विनोदिनी दासी की कहानी को आधुनिक समय में वर्तमान संदर्भों के साथ नाटक ‘नटी की नायिका मणि मेखला के ज़रिए कहने का प्रयास किया है।
उन्होंने इस नाटक को न सिर्फ लिखा बल्कि अपने थिएटर ग्रुप ‘नाटक कंपनी’ के अंतर्गत इसका सफल मंचन भी किया है। पाठक इस नाटक की कथा में सिनेमाई छवियों का भी अनुभव कर सकते हैं। बुंदेलखंड के ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले अभिनेता-डायरेक्टर राजा बुंदेला की धर्मपत्नी सुष्मिता मुखर्जी ने इससे पूर्व मी एंड जूही बेबी, ‘बांझ-स्त्री मन के अधखुले पन्ने’, कॉफी-टेबल बुक ‘ब्रेवआर्ट्स ऑफ बुंदेलखंड’ व उपन्यास ‘खजुराहो कन्नंड्रम’ का लेखन भी किया है।
19वीं सदी के बंगाल में अभिनेत्री विनोदिनी दासी ने न केवल सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा बल्कि अपने खुद के अंधेरे अतीत की छाया से बाहर आने का भी सफल प्रयास किया। एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई भेंट के बाद नटी विनोदिनी का स्वयं से साक्षात्कार हुआ और वह अध्यात्म की राह पर चल पड़ी। समय बदला मगर समाज की बनाई रूढ़ियां स्त्रियों के लिए आज भी कमोबेश कायम हैं। ऐसे में इस कहानी की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।
सुष्मिता मध्यप्रदेश के ओरछा में एक गैर-लाभकारी संगठन ‘रुद्राणी कलाग्राम एवं शोध संस्थान की संस्थापक भी हैं। जिसके अन्तर्गत राम महोत्सव ओरछा/ओरछा लिटरेचर फेस्टिवल के साथ-साथ बुंदेलखंड विकास बोर्ड के अध्यक्ष राजा बुंदेला के साथ पिछले 10 वर्षों से खजुराहो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन भी कर रही हैं। वह अभिनय के साथ लेखन में भी खूब सक्रिय हैं, और फिलहाल अपनी अगली किताब को पूरा करने में जुटी हुईं हैं।