कृषि एवं पशुपालन वैज्ञानिकों ने नवम्बर, 2023 माह के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में निम्नलिखित सलाह दी है जिसे प्रदेश के किसान अपनाकर लाभ उठा सकते हैं ।
प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के कृषि एवं पशुपालन वैज्ञानिकों ने नवम्बर, 2023 माह के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में निम्नलिखित सलाह दी है जिसे प्रदेश के किसान अपनाकर लाभ उठा सकते हैं ।
फसल उत्पादन: हिमाचल प्रदेश में गेहूँ रबी मौसम की मुख्य फसल है। गेहूँ को शुरू में ठण्डा वातावरण चाहिए। अगर वातावरण शुरू में गर्म हो तो जड़ कम बनता है और बिमारियां भी लगती हैं। निचले एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों के किसान नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में एच.पी.डब्ल्यू-155, एच.पी.डब्ल्यू-236, वी.एल.-907, एच.एस.-507, एच.एस.-562, एच.पी. डब्ल्यू-349, ऐच.पी.डब्ल्यू-249 व एच.पी.डब्ल्यू-368. किस्में लगाएं। खण्ड-1 के निचले क्षेत्रों में किसान एच.डी. -3086. डी. पी. डब्ल्यू- 621-50-595, व एच.डी.-2687 लगाऐं बिजाई के लिए रैक्सिल 1 ग्रा/कि.ग्रा बीज अथवा बैविस्टिन या विटावैक्स 2.5 ग्राम / कि.ग्रा. बीज से उपचारित बीज का प्रयोग करें।
गेहूं की बिजाई जहां सितम्बर के अन्त या अक्तूबर के आरम्भ में की गई हो और खरपतवारों के पौधे 2-3 पत्तों की अवस्था, बिजाई के 35-40 दिनों बाद में हों तो यह समय गेहूँ में खरपतवार नाशक रसायनों के छिड़काव का है। आइसोप्रोटूरान 75 डब्ल्यू.पी. 70 ग्रा. दवाई या वेस्टा 16 ग्राम एक कनाल के लिए पर्याप्त होती है। छिड़काव के लिए 30 लीटर पानी प्रति कनाल के हिसाब से प्रयोग करें।
मसर:• मसर की विपाशा, एच.पी.एल.-5 व मारकण्डे ई.सी.-1 किस्मों की बीजाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़े तक कर लें। यह फसल बरसात के बाद भूमि में बची नमी के द्वारा भी उगाई जा सकती है। बीज की मात्रा 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखें। पछेती बिजाई के लिए बीज की मात्रा अधिक रखनी चाहिए। फसल को केरा विधि से 25-30 सें.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बीजें
सब्जी उत्पादन: प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज की सुधरी प्रजातियों जैसे पटना रैड, नासिक रेड, पालम लोहित, पूसा रैड ए.एफ.डी.आर. ए.एफ.एल.आर. तथा संकर किस्मों इत्यादि की पनीरी दें। इण्डोफिल एम-45 तथा 10-15 ग्रा. कीटनाशक थीमेट या फोलीडॉल धूल 5 सें.मी. मिट्टी की उपरी सतह में मिलाने के उपरान्त 5 सें.मी. पंक्तियों की दूरी पर बीज की पतली बिजाई करें। बिजाई से पहले बीज का उपचार वैविस्टीन 2.5 ग्राम / कि.ग्रा. बीज से अवश्य करें।
इन्हीं क्षेत्रों में लहसुन की सुधरी प्रजातियों जी. एच.सी. 1. एग्रीफाउन्ड पार्वती की बिजाई पंक्तियों में 20 से.मी ब पौधें में 10 सें.मी. की दूरी पर करें। बिजाई से पहले 200-250 क्विंटल गोबर की गली सड़ी खाद के अतिरिक्त 235 कि.ग्रा. मिश्रण 12:32:16 खाद तथा 37 कि. ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें।
निचले एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की सुधरी प्रजातियों जैसे पालम समूल,पी.वी.-89, जी.एस.-10 आजाद पी. -1 एवं आजाद पी.-3 की बिजाई 45 सें.मी. कतारों तथा 10 सें.मी. पौधे से पौध की दूरी पर करें। बिजाई से पहले 200 क्विंटल गोबर की गली सड़ी खाद के अतिरिक्त 187 कि.ग्रा. मिश्रण 12:32:16 खाद, 50 कि. ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश तथा 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें। लाइन की दूरी 45 सेंमी तथा पौधों में 10 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखें।
फूलगोभी, बन्दगोभी, ब्रॉकली, चाइनीज सरसों इत्यादि की रोपाई 45-50 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति तथा 30-45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर करें। पालक, लैट्यूस, मेथी, धनिया व क्यूँ वाकला आदि को भी लगाने / बोने का उचित समय है। रोपाई से पूर्व 100 क्विंटल गोबर की गली सड़ी खाद के अतिरिक्त 185 कि.ग्रा. मिश्रण 12:32:16 खाद तथा 30-40 कि. ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से खेतों में डालें।
खेतों में पहले से लगी सभी प्रकार की सब्जियों में 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें. फिर निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन 40-50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें।
.फसल संरक्षण:जिन क्षेत्रों में विशेष रूप से बारानी क्षेत्रों में भूमि में पाये जाने वाले कीटों जैसे कि सफेद सुंडी कटुआ कीट तथा दीमक आदि का अत्याधिक प्रकोप होता है, वहां गेहूँ, चना, मटर आदि की बिजाई से पहले क्लोरपाइरीफॉस 20 ई. सी 2 लीटर रसायन को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव करें। गोभी वर्गीय सब्जियों की पौध लगाने से पहले कटुआ कीट से प्रभावित खेतों में भी उपरोक्त कीटनाशक व विधि को अपनाएं।
• सरसों वर्गीय फसलों में तेले का प्रकोप हो सकता है तथा इससे बचाव हेतु मैलाथियॉन नामक कीटनाशक का 1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
गेहूँ, मटर व चने की फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज का वीटावैक्स / वैविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार कर लें ।गोभी व प्याज की पनीरी में कमरतोड़ रोग की रोकथाम हेतु क्यारियों को वैविस्टीन 10 ग्राम व डाईथेन एम-45 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर सींचें।
पशुधन: नवम्बर महीने में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में ठंड बढ़ने लगती है। इसलिए पशुपालक ठंड के मौसम में होने वाले रोगों की रोकथाम तथा प्रबंधन से संबंधित कार्य सुनिश्चित करें। इस मौसम में फेफड़ों वसन तंत्र तथा चमड़ी के रोग अधिक होते हैं। घातक संक्रामक रोग जैसे पी. पी. आर. इस समय सिरमौर जिला में सम्भावित भेड़ और बकरी पॉक्स, इस समय किन्नौर जिला में संभावित गलधोंटू रोग, इस समय शिमला जिला में संभावित तथा खुरपका और मुंहपका रोग. इस समय सोलन, शिमला, मंडी और कांगड़ा जिलों में सम्भावित हो सकते हैं। पशुपालक जानवरों में बीमारी के किसी भी लक्षण जैसे भूख न लगना या कम होना, तेज बुखार की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लें। इस समय फेशियोला एवं एम्फीस्टोम नामक फीता कृमियों के संक्रमण को नजरअंदाज न करें। यह बीमारी निचले और दलदली क्षेत्रों में बहुत महत्त्वपूर्ण है जहां रोमन्धी मवेशियों को धान की घास खिलाई जाती है और घोंघे या शम्बूकों की आबादी प्रचुर मात्रा में होती है। बचाव के लिए पशुओं के गोबर की जांच पशु चिकित्सालय में करवा लें और रोग की निश्चित तौर पर पहचान हो जाने पर पशु चिकित्सक से रोगी पशु का उपचार करवाएं। पशु चिकित्सक की सलाह से पशुओं को पेट व जिगर के कीड़े मारने की दवाई दें। पहाड़ी क्षेत्रों में जानवरों को ठंड से बचाने के लिए उचित उपाय करें तथा पशुओं को पीने के लिए साफ गुनगुना पानी दें। पशुओं की विकास दर ठीक रखने के लिए प्रोटीन, विटामिन और खनिज युक्त संतुलित आहार दें । पशुओं में खनिज की कमी से बचने के लिए पशुओं को नमक चटाएँ। मछली पालन किसानों को सलाह दी जाती है कि तापमान में कमी के साथ मछली का फीड सेवन कम हो जाता है। इसलिए, तापमान के आधार पर खिलाने की दर को 50-75 प्रतिशत तक कम करना आवश्यक है। उचित जल निकासी और ताजे पानी की प्रचुरता होना बहुत महत्वपूर्ण है। मुर्गियों के लिए अधिक उर्जा देने वाला दाना मिश्रण देना आवश्यक है। खरगोशों में प्रजनन न करवाऐं, क्योंकि सर्दियों में बच्चों में मृत्यु दर बढ़ जाती है।
किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी हेतु नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395/1800-180-1551 से भी सम्पर्क कर सकते हैं।