चंडीगढ़
मौसम बदलते ही ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा, सतर्क रहे दिमाग से संबंधित मरीज
ब्रेन स्ट्रोक के उपचार में नई क्रांति लाई मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी
ब्रेन स्ट्रोक से पीडि़त बुजुर्ग महिला को मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से मिला नया जीवन
दिमाग का दौरा या लकवा मारने पर न घबराएं, गंभीर से गंभीर मरीज हो रहे स्वस्थ
कुरुक्षेत्र, 19 सितंबर ( ): यदि समय पर जांच करवा ली जाए तो एक लक्ष्ण से बीमारी की असली स्थिति का पता लग जाता है। ऐसे में उक्त लक्ष्ण दिमाग से जुड़ा हुआ हो तो थोड़ी से बरती लापरवाही से व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक (दिमाग का दौरा) पडऩे के कारण एक जटिल दिमागी बीमारी की चपेट में आ सकता है। आज ब्रेन स्ट्रोक/अधरंग जैसे रोग संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए जाने माने इंटरवेंशनल न्यूरोरेडयोलॉजिस्ट डा. विवेक अग्रवाल कुरुक्षेत्र पहुंचेे। उन्होंने कहा कि ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरा) पडऩे पर यदि मरीज को तुरंत ऐसे अस्पताल पहुंचाया जाए, जहां अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट, इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, आपातकालीन चिकित्सकों, एनेस्थेटिस्ट और फिजियोथेरेपिस्ट की विशेषज्ञ टीम के साथ-साथ एडवांस स्ट्रोक देखभाल की सुविधाएं उपलब्ध हों तो मरीज जल्द स्वस्थ व अधरंग के असर को कम या खत्म किया जा सकता है।
फोर्टिस अस्पताल मोहाली के न्यूरो-इंटरवेंशन एंड इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के कंस्लटेंट डा. विवेक अग्रवाल ने कहा कि न्यूरो से संबंधित बीमारियों के लक्ष्ण दिमागी हालत से जुड़े होते हैं, जिनमें भूल जाना, चेतना की कमी, एक दम व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आना, क्रोधित होना व तनावग्रस्त आदि लक्ष्ण शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यदि न्यूरोलॉजी से संबंधित मरीज का इलाज नहीं करवाया जाता तो इसके गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। उन्होंने बताया कि मौसम बदलते ही मस्तिष्क रोगियों की रक्त की आपूर्ति कम या बाधित होने के कारण ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरा) पडऩेे का अधिक खतरा रहता है।
डा. विवेक अग्रवाल ने बताया कि हाल ही में ब्रेन स्ट्रोक के बाद चार घंटे बाद बेहोशी की हालत में 82 वर्षीय बुजुर्ग मरीज उनके पास पहुंची। उनके शरीर के बाएं हिस्से को लकवा हो गया था। चिकित्सा उपचार में यदि थोड़ी देर हो जाती तो वह महिला मरीज को घातक स्थिति में पहुंचा सकती थी। मरीज के दिमाग के दाहिनी ओर अवरूद्ध हुई रक्त आपूर्ति को मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की मदद से आर्टरी से क्लाट को हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी को ब्रेन स्ट्रोक के रोगियों के लिए गोल्ड स्टेंडर्ड माना जाता है, वहीं मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ है। उन्होंने कहा कि दिमागी दौरा या लकवा मारने पर बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव आने से गंभीर से गंभीर मरीज स्वस्थ हो रहे हैं।
डा. अग्रवाल ने बताया कि दिमागी दौरे (ब्रेन स्ट्रोक) पडऩे पर मरीज के लिए हर सैकेंड मायने रखता है। उन्होंने कहा कि यदि अस्पताल व्यापक स्ट्रोक सुविधाओं से लैस नहीं है, तो मरीज को ऐसे अस्पताल में पहुंचाना व्यर्थ या समय बर्बाद है। मरीज स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के कारण औसतन स्ट्रोक में हर मिनट 1.9 मिलियन न्यूरॉन्स खो देता है, जो हमेशा अधरंग या मौत का कारण बनता है। उन्होंने बताया कि मौसम बदलते समय अधिक समस्या रक्तचाप वाले मरीजों को होती है तथा ऐसे में संबंधित मरीजों को अपने स्वास्थ्य की निरंतर जांच करवाते रहना चाहिए।