अंतरराष्ट्रीय
इमरान की विदेश नीति से नाराज जनरल बाजवा ?
संजीव पाण्डेय
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के बीच पाकिस्तान की विदेश नीति को लेकर मतभेद सामने आ गया है। जनरल बाजवा ने साफ कहा है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच लंबा स्ट्रैटजिक पार्टनरशीप है। बाजवा के अनुसार पाकिस्तान कैंप पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं करता है। बाजवा ने कहा कि एक तरफ जहां चीन से पाकिस्तान का बहुत अच्छे संबंध है, वहीं अमेरिका से पाकिस्तान एक्सैलेंट रिलेशनशीप है। इस्लामाबाद सिक्युरिटी डॉयलॉग में जब बाजवा ने अपने ये विचार ऱखे उस समय इमरान खान के खास पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी मौजूद थे। बाजवा ने भारत से बेहतर संबंध बनाने की वकालत की जो इमरान खान के अडियल रवैये के बिल्कुल विपरित है। बाजवा ने कहा कि वे भारत के साथ संबंधों को बेहतर करना चाहते है, आगे बढना चाहते है।
पाकिस्तान में बहुत ही दिलचस्प स्थिति पैदा हो गई है। इमरान खान के निशाने पर अमेरिका है। वे अपनी सरकार के खिलाफ लाए गए नो कॉंफिडेंस मोशन के अमेरिका को जिम्मेवार ठहरा रहे है। उधर बाजवा ने अमेरिका को लंबा स्ट्रैटजिक पार्टनर बताया है। बाजवा ने तो साफ कह दिया कि पाकिस्तानी सेना अमेरिका से संबंधों को खराब नहीं करेगी। वैसे में इमरान खान का सत्ता से जाना लगभग तय है।
इमरान खान उस हकीकत को भूल गए जो पाकिस्तान के विदेश नीति और अंदरूनी सत्ता को प्रभावित करता है। पाकिस्तान बनने के कुछ सालों बाद ही पाकिस्तानी हुक्मरान अमेरिका की सहमति से पाकिस्तान को रूल करते रहे। अमेरिका ने जब चाहा किसी भी पाकिस्तानी शासक को कमजोर किया, उनके खिलाफ वहां दूसरे को खड़ा किया औऱ सत्ता से बाहर किया। यह सिलसिला जनरल अयूब खान के समय से चल रहा है। जनरल अयूब खान पाकिस्तान के तानाशाह बने, लेकिन इसके लिए उन्होंने अमेरिका की सहमति ली थी। जनरल जिया-उल-हक ने भुट्टों का तख्ता पलट किया। जिया ने भी अमेरिका से सहमति ली थी। कागजी समाजवादी जुल्फिकार अली भुटों से अमेरिका प्रसन्न नहीं था। 1970 के दशक में भुटो नकली समाजवाद ला रहे थे औऱ इस्लामिक मुल्कों का एक गुट बना रहे थे। उनके परमाणु कार्यक्रम को भी अमेरिका पसंद नहीं करता था। भुट्टों के खास चेले जनरल जिया ने ही भुट्टों को सत्ता से बेदखल कर दिया। जनरल जिया अमेरिका के आशीर्वाद से पाकिस्तान पर शासन करते रहे। अमेरिका ने जिया का खासा उपयोग अफगानिस्तान में किया। लेकिन जब जनरल जिया की जरूरत अफगानिस्तान में नहीं रही तो जिया साहब भी बेगाने हो गए। उनकी भी मौत एक प्लेन क्रैश में हो गई।
1990 के दशक में पाकिस्तान में फिर से लोकतंत्र बहाल हो गया। पाकिस्तानी लोकतंत्र को फिर से सम्हालने की जिम्मेवारी जुल्फिकार अली भुटटो की बेटी बेनजीर भुट्टों औऱ औऱ जनरल जिया के खास रहे कश्मीरी मूल के नवाज को दी गई। 1990 के दशक समय-समय पर अमेरिकी आशीर्वाद ले पाकिस्तान पर शासन करते रहे। 1990 के दशक में पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकारें अमेरिकी सहमति से पाकिस्तान पर शासन करती रही। पाकिस्तानी सेना अमेरिकी सहमति से इन चुनी हुई सरकारों को गिराती और बनाती रही। तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने जब नवाज शरीफ का तख्ता पलट किया तो उसमें भी अमेरिकी सहमति थी। अमेरिकी सहमति के बाद ही मुशर्रफ तानाशाह बन पाए। मुशर्रफ अमेरिका के इस कदर नजदीक थे कि अमेरिका के वार अगेंस्ट टेरर में अमेरिका के सहयोगी बन गए। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियान के दौरान मुशर्रफ ने पाकिस्तान के कबायली इलाकों में अमेरिकी ड्रोन हमले की अनुमति दे दी। क्योंकि इस यह इलाका आतंकियों का गढ था।
2007 में लंबे निर्वासन के बाद बेनजीर भुटटों पाकिस्तान लौटी। बेनजीर की वापसी के पीछे भी अमेरिका था। अमेरिका ने बेनजीर और मुशर्रफ के बीच सुलह करवायी थी। हालांकि बेनजीर आतंकी हमले में मारी गई, लेकिन उनकी मौत ने जरदारी की किस्मत खोल दी और वे पाकिस्तान के प्रसिडेंट बन गए। 2013 में नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। नवाज शरीफ वैसे तो अमेरिका के खासे नजदीक रहे है क्योंकि उनका कारोबार पश्चिमी देशों में है। पाकिस्तान से बाहर नवाज का मुख्य ठिकाना दुबई और लंदन ही रहा है। लेकिन कारोबारी नवाज शरीफ अपने तीसरे कार्यकाल में चीन से खासे नजदीक हो रहे थे। अमेरिका ने इसे पसंद नहीं किया। अमेरिका ने नवाज का इलाज बहुत तरीके से किया। अमेरिका के इशारे पर पाकिस्तानी सेना ने यही इमरान खान को नवाज के खिलाफ खड़ा किया। कनाडा में रहने वाले एक बडे धर्म गुरू तहीरूल कादिरी को नवाज शरीफ के खिलाफ ख़डा किया गया।
बरेलवी संप्रदाय के सूफी धर्म गुरू कादिरी अमेरिका के नजदीक है। दोनों नवाज के खिलाफ इस्लामाबाद में धरने पर बैठ गए। सेना का सहयोग दोनों को खूब मिला। 2018 में नवाज शरीफ की विदाई हो गई। वे सत्ता से बेदखल हो गए। उनके बाद इमरान खान सत्ता में आए। वे नया पाकिस्तान तो नहीं दे पाए लेकिन रूसी कैंप में जाने का खामियाजा भुगत रहे है। सत्ता से बेदखल होने की स्थिति में है। सेना इशारों में उन्हें अपनी मर्जी बता रही है। हालांकि इमरान खान अंतिम समय तक लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहे है।