अंतरराष्ट्रीय

क्या सत्ता बचा पाएंगे इमरान 

                                                                                                                                                    संजीव पांडेय
इमरान खान अपनी सरकार बचाने के लिए भारी संघर्ष कर रहे है। अपनी सरकार बचाने के लिए उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार की कुर्बानी दे दी है। इमरान खान को अपने प्रधानमंत्री पद बचाने के लिए अपनी ही पार्टी के बहुमत वाले मुख्यमंत्री बुजदार की कुर्बानी देनी प़ड़ी है। उन्होंने पंजाब का मुख्यमंत्री पद अपने सहयोगी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) के चौधरी परवेज इलाही को देने का ऑफर किया है। परवेज इलाही के इस ऑफर के बदले इमरान सरकार को बचाने की जिम्मेवादी दी गई है। परवेज इलाही को इमरान खान के खेमे से तोड़ने की पूरी जुगत विपक्ष ने कर ली थी, लेकिन नवाज शरीफ और मरियम नवाज की जिद्द ने परवेज इलाही को इमरान खान के साथ रहने को मजबूर किया। परवेज इलाही विपक्ष से पंजाब के मुख्यमंत्री पद चाहते थे। लेकिन मरियम नवाज और नवाज शरीफ इसके लिए तैयार नहीं हुए। इमरान खान ने लास्ट मिनट में अपने प्रधानमंत्री पद को बचाने के लिए विपक्ष को झटका दिया और परवेज इलाही को पंजाब का मुखिया बनने का ऑफर दे दिया। हालांकि इसके बाद भी इमरान खान की सरकार बचेगी या नहीं यह 4 अप्रैल को पता चलेगा। क्योंकि इमरान खान की पार्टी के लगभग 40 सांसद बागी हो गए है। इन्हें मनाने की जिम्मेवारी परवेज इलाही की है। 1970 के दशक से पंजाब की राजनीति पर हावी परवेज इलाही अब नाराज सांसदों के मनाने के लिए सक्रिय हो गए है। जानकारों के मानना है कि अगर परवेज इलाही को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला इमरान खान दो हफ्ते पहले कर लेते तो शायद इमरान बाजी पलट सकते थे। क्योंकि परवेज इलाही के पास नाराज सांसदों को मनाने के लिए कुछ दिन ही बचे है।
हालांकि इमरान खान अपने खिलाफ विदेशी साजिश की बात कर रहे है। लेकिन यह सच्चाई है कि पाकिस्तान में पंजाब प्रांत नेशनल असेंबली में काफी महत्व रखता है। उन्होंने पाकिस्तान की राजनीति के नस्ली, जातीए हकीकत को नजरअंदाज किया। पंजाब प्रांत में कश्मीरी मुसलमान, जाट और राजपूत काफी मजबूत है। लेकिन इमरान खान ने पंजाब प्रांत में आबादी के हिसाब से काफी कम बलोच जाति के नेता उस्मान बजुदार को मुख्यमंत्री बना दिया। जबकि यह एक सच्चाई है कि पंजाब जैसे राज्य में जाति और कौम के नाम पर वोट पड़ते है। बुजदार एक विफल मुख्यमंत्री शामिल हुए। वहीं नवाज शरीफ के नेतृत्व के पीछे लगने वाले कश्मीरियों औऱ परवेज इलाही के साथ चलने वाले जाट लॉबी भी उनके खिलाफ रहा। दरअसल पाकिस्तान की राजनीति को जहां सेना पीछे से नियंत्रित करती है वहीं राजनीति में सक्रिय ज्यादातर लोग अमीर उधोगपति या जमींदार है। पाकिस्तान की राजनीति को स्टील, शुगर औऱ सिमेंट इंडस्ट्री से जुड़े लोग ही कंट्रोल करते है। इस समय इमरान खान के खिलाफ शुगर और स्टील लॉबी जबरजस्त सक्रिय है। वहीं इमरान खान का पश्तून होना भी शायद उनके खिलाफ जा रहा है।
इमरान खान इस समय अमेरिका को भी  कोस रहे है। उनका कहना है कि अमेरिका भी उन्हें हटाने के खेल में लगा है क्योंकि वे पाकिस्तान को इंडपेन्डेंट विदेश नीति दे रहे है। उन्होंने इशारे-इशारे में अमेरिका को भी उन्हें सत्ता से बाहर करने की साजिश में शामिल बताया है। हालांकि सच्चाई तो यह भी है कि इमरान खान सरकार जनता के मुद्दों पर खरे नहीं उतरे है। पाकिस्तान के आर्थिक हालात खराब है। पाकिस्तान में अगले साल चुनाव होना है। इमरान खान सरकार के संबंध इस समय सेना से बहुत अच्छे नहीं है। दिलचस्प बात है कि पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा इस समय काफी संतुलित खेल कर रहे है। उनका हर कदम सत्ता और विपक्ष दोनों को नाराज नहीं कर रहा है। हालांकि यह तय है कि पाकिस्तानी सेना इमरान खान सरकार को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। जबकि यह भी सच्चाई है कि 2018 में जब इमरान खान ने नवाज शरीफ की पार्टी को सत्ता से बाहर किया था तो सेना ने उनहें खासी मदद की थी। जनरल बाजवा को बेशक इमरान खान ने एक्सटेंशन दिया, लेकिन समय-समय पर सेना को आंख दिखाने की कोशिश भी की। आईएसआई के पूर्व मुखिया फैज हामिद को जनरल बाजवा ने आईएसआई चीफ पद से हटा कार्पस कमांडर लगाने की सिफारिश की तो इमरान खान ने फाइल को लंबे समय तक लटकाए रखा। इससे निश्चित तौर बाजवा नाराज हुए क्योंकि जनता के बीच यह मैसेज किया कि इमरान खान सेना से स्वतंत्र होकर काम कर रहे है। हालांकि बाजवा ने पूर्व जनरलों की तरह व्यवहार नहीं किया औऱ जनता को यही मैसेज दिया कि वे पूर्व जनरलों की तरह पाकिस्तान की सत्ता पर सीधे काबिज नहीं होने चाहते है। अंदरखाते दबाव डालकर उन्होंने इमरान खान को मजबूर किया कि वे नए आईएसआई चीफ नदीम अँजुम की नियुक्ति के फैसले पर सहमति दे और फैज हामिद को आईएसआई चीफ पद से मुक्त करें। दरअसल पाकिस्तान के वर्तमान हालात को देखते हुए सेना सीधे वहां सत्ता नियंत्रित करने के पक्ष में नहीं है। क्योंकि आर्थिक हालात इतने खराब है कि अगर हालात और बिगड़े तो सीधे जनता के निशाने पर सेना होगी। 

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