राष्ट्रीय

सरकार झुकी, पर किसानों की नाराजगी क्या होगी कम ?

संजीव पांडेय

दिल्ली बार्डर पर स्थित सिंघू, टिकरी और गाजीपुर में जश्न का माहौल है। उतर प्रदेश और पंजाब में अगले साल की शुरूआत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा कर दी है। हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में भाजपा की हुई हार और उतर प्रदेश में भाजपा की खिसकती जमीन ने शायद सरकार को किसानों के सामने झुकने को मजबूर किया। भूमि अधिग्रहण कानून के बाद यह दूसरा प्रमुख मौका है, जब नरेंद्र मोदी सरकार अपने किए फैसले से पीछे हट गई है। इसमें कोई शक नहीं है कि बढती महंगाई ने गरीबों और मध्यवर्ग का भाजपा से मोहभंग हुआ है। इस कारण आरएसएस और भाजपा दोनों की चिंता बढी है। हिंदी क्षेत्र की मध्यवर्ती किसान जातियां, जो हिंदुत्व के लहर में भाजपामय हो गई थी, वे भी अब भाजपा से नाराज नजर आ रही है। वैसे में कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा भाजपा और केंद्र सरकार की मजबूरी है।  

पश्चिमी यूपी के 100 सीटों पर भाजपा की जमीन कमजोर हुई

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के घोषणा का तत्कालिक कारण यूपी विधानसभा चुनाव भी है। पश्चिमी उतरप्रदेश के 100 सीटों पर प्रभावी किसान मतदाताओं के तेवर इस समय भाजपा के प्रति काफी गरम है। इसकी जानकारी भाजपा आलाकमान को है। पश्चिमी उतर प्रदेश के 18 जिलों में भाजपा को जाट-मुस्लिम एकजुटता का भय हो गया है। यही नहीं गैर जाट हिंदू किसान जातियां की भी एक बडी संख्या तीनों कृषि कानूनों के कारण भाजपा से नाराज है। पश्चिमी उतर प्रदेश में मुस्लिम- जाट एकजुटता भाजपा को भारी नुकसान कर सकती है। मुस्लिम-जाटों की एकजुटता 100 विधानसभा सीटों पर भाजपा की परेशानी खासी बढा देगी। फतेहपुर सिकरी से लेकर सहारनपुर तक भाजपा की मुश्किलें इस समय खासी बढी हुई है। हालांकि मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण जाटों और मुसलमानों की बीच बढी दूरियां कम नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक-आर्थिक मजबूरियां इन दोनों को भाजपा विरोधी मंच पर ला रही है।

मध्यवर्ती हिंदू किसान जातियों ने भाजपा को सत्ता दिलवायी

पश्चिमी उतर प्रदेश से लेकर पूर्वी उतर प्रदेश तक भाजपा की सफलता का एक बडा कारण मध्यवर्ती हिंदू किसान जातियां है, जिसमें जाट, गुर्जर, कुर्मी, कोयरी, सैनी, लोध आदि जातियां शामिल है। संख्याबल में मजबूत ये मध्यवर्ती हिंदू किसान जातियों हिंदुत्व के रंग में खूब रंगी है। पिछले तीस सालों में इन जातियों पर भाजपा और आरएसएस ने खूब काम किया। 1990 के बाद इन जातियों के वोट भाजपा को मिले। इससे भाजपा मजबूत हुई। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सफलता का एक ब़डा कारण मध्यवर्ती हिंदू किसान जातियों का यूपी में भाजपा की तरफ आना था। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी उतर प्रदेश से लेकर पूर्वी उतर प्रदेश तक मध्यवर्ती हिंदू किसान जातियों ने जमकर भाजपा को वोट दिया। पश्चिमी उतर प्रदेश में जाट, खुलकर भाजपा के साथ आए। मुजफ्फर नगर के दंगों ने जाट जाति का लगाव भाजपा की तरफ बढा दिया। हालांकि पडोस के हरियाणा राज्य में बहुसंख्यक जाट भाजपा से दूरी बनाए रखे। यहां पर जाटों का एक बड़ा तबका कांग्रेस के साथ नजर आया। लेकिन पश्चिमी उतर प्रदेश के जाटों में लोकप्रिय रहे चौधरी चरण सिंह भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे का शिकार हो गया।  भाजपा के हिंदुत्व के बढते प्रभाव के कारण चरण सिंह परिवार पश्चिमी उतर प्रदेश में कमजोर हो गया।

किसान आंदोलन ने चरण सिंह के पोते जयंत को खासी मजबूती दी

नवंबर 2020 में दिल्ली सीमा पर शुरू हुए किसान आंदोलन ने चरण सिंह परिवार की राजनीति फिर से जिंदा कर दिया। गाजीपुर सीमा पर राकेश टिकैत के आंसू ने जाटों के भाजपा प्रेम को कमजोर कर दिया। राकेश टिकैत के आंसू के साथ चरण सिंह परिवार खड़ा हो गया। यही से जयंत चौधरी की पश्चिमी उतर प्रदेश की जाट राजनीति में जोरदार वापसी हो गई। भाजपा के ताकतवर जाट नेताओं की एंट्री पश्चिमी उतर प्रदेश के गांवों में मुश्किल हो गई। इस इलाके के भाजपा सांसद लगातार भाजपा हाईकमान को जमीनी हकीकत की जानकारी देते रहे। हालांकि एक साल से भाजपा हाईकमान उनकी आवाज नहीं सुन रहा था। लेकिन अब वे आशान्वित है। भाजपा को लगता है कि अब पश्चिम के किसानों की नाराजगी काफी हद तक दूर हो जाएगी।

जमीनी हकीकत की जानकारी सरकार को नहीं

केंद्र की भाजपा सरकार कुछ कारपोरेट घरानों की सलाह पर नीतियां बनाती रही है। इधर जमीन पर सरकार से बढती नाराजगी की सही जानकारी सरकारी एजेंसियों ने सरकार को नहीं दी। सरकारी खुफिया एजेंसियों ने कुछ अलग ही जमीनी हकीकत सरकार को बतायी। सरकार को लगा कि दिल्ली सीमा पर बैठे सिक्ख किसान खालिस्तानी है। इनका किसानी से कोई लेना देना नहीं है। तर्क दिया गया कि किसान को फटे कपडे पहनते है। पर दिल्ली सीमा पर बैठे किसान तो महंगे जूते तक डाल रखे है। उधर किसानों ने बढती महंगाई से किसान आंदोलन को जोड़ा। देशवासियों को बताया कि अगर किसानी कारपोरेट कंट्रोल में गई तो देश का मध्यवर्ग तबाह हो जाएगा। उसे दूध से लेकर सब्जी तक इतनी ज्यादा महंगी खरीदनी पडेगी कि इसका अंदाजा उन्हें नहीं है। उन्होंने कारपोरेट के कंट्रोल स्टोरों में बिकने वाली रोजमर्रा के चीजों की कीमतों का उदाहरण भी मध्यवर्ग के सामने रखा। किसान यूनियनों ने हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों को भी इस बार कारपोरेट कंट्रोल वाली खेती का हकीकत समझाया। जब अदानी समूह ने एकाएक सेब की खरीद कीमतें गिरायी, हिमाचल के सेब उत्पादकों को कारपोरेट कंट्रोल खेती का खेल समझ में आ गया। सेब उत्पादकों की नाराजगी की गाज भाजपा पर गिरी। हाल ही में हिमाचल प्रदेश में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा हार गई। सेब उत्पादन का केंद्र जुब्बल कोट खाई में भाजपा के उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।

क्या जयंत चौधरी भाजपा खेमे में आएंगे ?

क्या अब भाजपा उतर प्रदेश और पंजाब में नाराज किसानों को मनाने में कामयाब हो जाएगी ? पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा मिलकर लडने की योजना बना रहे है। लेकिन पंजाब में हालात भाजपा और अमरिंदर सिंह के लिए इस समय अनुकूल नहीं है। भले ही किसानों की मांग मान ली गई है। लेकिन भाजपी की चिंता यूपी ज्यादा है। यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की रैलियों में आ रही भीड से भाजपा परेशान है। अब भाजपा की कोशिश  होगी कि राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ भाजपा के साथ गठबंधन में आए। हालांकि जयंत चौधरी शायद ही भाजपा के साथ जाए? जयंत चौधरी के नजदीकियों का तर्क है के वे अपने पिता स्वर्गीय अजीत सिंह से अलग है और भाजपा की चाल में नहीं फंसेंगे। लेकिन भाजपा एक बार जयंत चौधरी से बातचीत का चैनल जरूर खोलेगी।

अमरिंदर और भाजपा की जुगलबंदी

भाजपा ने किसानों और किसान संगठनों से बातचीत के बजाए मजबूत लीडरशीप के अर्थमेटिक पर काम किया। इस अर्थमेटिक के तहत पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पश्चिमी उतर प्रदेश में जयंत चौधरी के साथ भाजपा ने चैनल खोले। कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीबीआई और ईडी का डर दिखाया गया। हरियाणा के कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी सीबीआई और ईडी का भय दिखाया गया। हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा को डिप्टी सीएम का पद ऑफऱ किया गया। जयंत चौधरी से भी  बातचीत के चैनल खोला गया। उन्हें यूपी में डिप्टी सीएम पद का ऑफर किया गया। लेकिन जयंत चौधरी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों भाजपा के प्रस्ताव से दूरी बनाए रखे हुए है। जयंत चौधरी ने तो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

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